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Friday, November 11, 2011

जिन्दगी भी अजीब है -डूबती जाकर वहां है - जहाँ से साहिल बहूत करीब है .

जिन्दगी भी अजीब है -डूबती
जाकर वहां है - जहाँ से
साहिल बहूत करीब है .

लहरे हवाओं का - कभी
बुरा नहीं मानती - तुफानो
से लडती तो हैं - पर कभी रार नहीं ठानती.

एक हम हैं की चार कदम - चले
और बैठ जातें हैं - मंजिलें वहां से ही
शुरू होती है - जहाँ पहले पहल 
परिस्थितियों से हम मात खाते  हैं .

उपवास पर नहीं है सूर्य - अनशन
नहीं करता चाँद - कंदीलें लोग
सरे शाम से ना जाने क्यों जलाते हैं .

चाँद के  -हुस्न में अब वो
कशिश नहीं होती - ये बूढ़े लोग
ना जाने क्यों - चांदनी से यूँही जले जाते हैं . 


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