रूप, रस, रंग नहीं - अंग नहीं संग नहीं
नीरस जीने की अब कोई उमंग नहीं .
बिना पतवार के मैं पार जाऊं अब कैसे
झील से ठहरे जल में उठती कोई तरंग नहीं .
ये एक मुकाम पे आकर के रुक गए कैसे
बहूत दुश्वार पहुंचना जो - थक गए ऐसे
जमीं चलती है चाँद चलता है - कलुष घटता है
सुबह होती है और शुभ्र दिन निकलता है .
रात होने को है और सफ़र अभी बाकी है
ये सरे शाम अलावों को तुम जलाओ मत
मंजिले दूर हैं - यूँ थकके बैठ जाओ मत
काफिले ठहरते नहीं - तुम भी रुक जाओ मत .
नीरस जीने की अब कोई उमंग नहीं .
बिना पतवार के मैं पार जाऊं अब कैसे
झील से ठहरे जल में उठती कोई तरंग नहीं .
ये एक मुकाम पे आकर के रुक गए कैसे
बहूत दुश्वार पहुंचना जो - थक गए ऐसे
जमीं चलती है चाँद चलता है - कलुष घटता है
सुबह होती है और शुभ्र दिन निकलता है .
रात होने को है और सफ़र अभी बाकी है
ये सरे शाम अलावों को तुम जलाओ मत
मंजिले दूर हैं - यूँ थकके बैठ जाओ मत
काफिले ठहरते नहीं - तुम भी रुक जाओ मत .
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