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Thursday, August 25, 2011

आंधियां देश दुनिया घर नहीं देखती

आंधियां देश दुनिया घर नहीं देखती 
कोई पगडण्डी -सड़क शहर नहीं देखती 
जमीन से उठती हैं - और छा जाती हैं -
आसमान में या सारे जहान में .

किसी के घर आंगन - तक
आके लौट जाती हैं  
किसी महलनुमा घर के -खिडकियों 
दरवाजों तक की चूलें हिला जाती हैं. 

कभी कभी गलती से - किसी सही 
आदमी के इरादों में समां जाती हैं -
लौट कर - फिर कहीं नहीं जाती हैं .
और हर घडी यूँ ही तूफ़ान उठाती हैं .

1 comment:

  1. बिल्कुल सही कहा…………सुन्दर प्रस्तुति।

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