Popular Posts

Wednesday, August 3, 2011

प्रेम कहीं नहीं - बस घूँट दर घूँट गरल.

प्रेम कहीं नहीं - बस
घूँट दर घूँट गरल.
हर कहीं - बिखरे हुए से हम .
बीत जाती है उम्र -समेटने में  
जिन्दगी की कथा - नहीं
होती सीधी और सरल .

चलो पत्ते पे पड़ी  -
शबनम की बूँद - सावधानी से 
उठा ले - मिले जो फुर्सत तो
थोडा हंसले- गालें.

बुरा ना माने तो इन -छोटी छोटी -
दूर होती हुई खुशियों के -
बुझते दीये फिर से जला लें .  

अब आपसे क्या कहें - कल के
बच गए बासे ग़मों पर -खोखली
हंसी हंस लें -झूठे ही सही -
जी भर के कहकहे लगा लें .

कल का क्या है - कल तो काल
का नाम  है- एक रोज आएगा जरुर .
फिर भी - बेईमान होती
इस जिन्दगी को - उजड़ने से
कुछ तो बचा लें .


No comments:

Post a Comment