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Wednesday, August 10, 2011

तीर किसी और का

तीर  किसी और का -
कमान किसी और की
खेत-खलिहान मेरे बाप का - तो
कैसे ये मैंढ किसी और की .
तेरी मेरी बात - ना सुनाऊं     
किसी और की .


छाडू ना कलाई  - चाहे माने 
ना मिताई   - मारूं  
या कूँ  मैं कन्हाई   - तेरी
गीता की कहाई - नहीं
बात किसी और की .

छन में बिगाडूँ- याको चक्करवीयू
फाडूं - नहीं छोडूं याकूं  मारूं .
फेरी काहे को बिचारूं - नहीं
मानू मैं तो 'हर' की  .

तेरो याही में - आराम
भाग - लेके या दूकान
खाली कर दे मकान -
और करो ना हैरान - वर्ना होगो
परेशान  - याही बात है फ़िक्र की .

(
ये चंद लाइने  उनके लिए जो
देश की व्यवस्था पर सांप की
तरह कुंडली मारे बैठे हैं )



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