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Sunday, August 21, 2011

क्षणिकाएं

मेरी मिटटी - में जब खुशबुओं का वास है,
इस हवा से तो पूंछ - आखिर क्यों उद्दास है
अरे बुधू नहीं हूँ गैर कोई - ना पराया हूँ ,
जन्म से साथ तेरे - साथ आया हूँ .
नहीं समझा अभी तक कौन हूँ मैं  -
नहीं कोई और - मैं तेरा साया हूँ  
खुद की परछाइयों  से डर रहे हो -
बड़े नादान हो -क्या कर रहे हो .
ये सच है - या सच का भ्रम सा
सच में नासूर है - या मामूली वर्म सा .
प्रतिमा है -भक्त और भगवान भी
यार - लगता तो है कुछ कुछ धर्म सा .
ये सागर प्रेम रसरंग का - कूदो
और गोते खाओ - पछताओगे
तैर के किनारे पे मत जाओ .
मेरी बात जाने दो -
अपनी कहो ना .
जो मेरे हो तो - मेरे
पास ही रहो ना .
जो उतरा पार - क्या जाने
डूबने का मजा - क्या है .
आपने जाना तो सही - हमने
कहा क्या है .
 
 

 

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