दिवाली पर तो नहीं डरता था
आज इतना हल्ला मचाता है .
अबे दो चार बम कोई छुटाए -
उनके धमाकों से -
तू क्यों मरा जाता है .
...
सब खेल है -सियासत है
पटरी से उतरी रेल है .
कितने मर गए - कौन सी
साली लंका ख़ाली कर गए .
अभी तो इतनी फ़ौज है -
चाहे दुश्मनों की मौज है .
चलने दे छोटे मोटे पटाखे -जब
मन आये ये पिटपिट बंद कर दीयों -
सालों के दो चार -थोबड़े पे धर दियो .
तू मर्द है - मर्द को दर्द नहीं होता
सिसकते तो जनखे हैं -आखिर
बिखरते तो माला के मनके हैं .
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चोट लगती है फूल से भी यार फूल पत्थर की तरह फैंको मत सुर नहीं साज नहीं आवाज़ नहीं अब यूँ गधों की तरह रेंकों मत . जिनावर ...
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घोड़े को घास खा गयी जनता को आस खा गयी . जुल्फके नाग हटाये ही थे चंदन की बास आ गयी . जुआरी को ताश खा गयी - गुलाम को रानी रास आ गयी...
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किसीकी जात में दम है - किसीकी पांत में दम है. किसीकी दौलते चलती किसीके हाथ में दम है . ना तेरे प्यार में दम है ना मेरे प्यार में...
आक्रोश और दुःख के सिवा जो बचा है वो हौसला |
ReplyDeleteराजनेताओं ने एक बार अपनी टिप्पणियों से फिर छला ||
हर-हर बम-बम
बम-बम धम-धम |
थम-थम, गम-गम,
हम-हम, नम-नम|
शठ-शम शठ-शम
व्यर्थम - व्यर्थम |
दम-ख़म, बम-बम,
तम-कम, हर-दम |
समदन सम-सम,
समरथ सब हम | समदन = युद्ध
अनरथ कर कम
चट-पट भर दम |
भकभक जल यम
मरदन मरहम ||
राहुल उवाच : कई देशों में तो, बम विस्फोट दिनचर्या में शामिल है |