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Friday, December 30, 2011

फूलों - बहारों की बात जाने दो

फूलों - बहारों की बात जाने दो
जरा इस तरफ - पत्थरों की बौछार
तो आने दो - बचें या फटे हमें क्या 
उन्हें सर अपना खुद बचाने दो .

और बढ़िया क्या होगी - सौगात
तमाचे गाल पे - इनके अभी लगाने दो
पुराना साल बीत जाएगा तो क्या -
इस नए साल को तो जरा आने दो .

नए चेहरे नहीं - वही बासे हैं
हाथ में उनके वही पासे हैं .
खेल नटवर को खेलने दो अब
शुक्नी को भी तो मात खाने दो .

कोई दो चार - नहीं अरबों -खरबों हैं
हिसाब मुझको आज तुम लगाने दो
एक एक पाई वसूल होगी अब -तुम 
मुझे रौशनी में तो जरा आने दो .

प्यार हमने भी किया था यार

प्यार हमने भी किया था यार - पर
हम अपने ही रहे - किसी और के
ना जाने कभी हो ना सके .

वक्त की मार - ने कस्बल
सारे ढीले कर दिए .
लगाये थे  बूंटे तो - बहारों में  
नामुराद - पतझर ने पात सारे
पीले कर दिए .

जुल्फे रुखसार पर फ़िदा जान थे हम
चाँद निकला ना कभी -
काली घटा छाई रही .
निकाह की बात जाने दो -
सफल अपनी तो सगाई ना रही .

आगंतुक का - स्वागत हो

इतना सुन्दर भी नहीं था
की जाने का शोक होता .
इतना बुरा भी नहीं था की -
चला जाता तो अच्छा था.

जैसा भी था मेरा कल
जो अब नहीं है .
आज मैं जी रहा हूँ - जैसा भी है
ये नया कल - अभी आया नहीं है
जाने कैसा होगा -कौन जाने .

पर - आशाएं अभी से
हम क्यों छोड़ें .
अपना आशावादी -
दृष्टिकोण आखिर क्यों तोड़ें .

आगंतुक का - स्वागत हो
आरती का थाल सजाने दे .
वो अपने साथ - ख़ुशी या गम
ज्यादा या कम - जो भी
ला रहा है - उसे लाने दे .

क्षणिकाएं

बहूत खूब जिये - वो गुजरे पल
चलता रहता है - ये आज और कल
समय के साथ साथ - उम्र भर चल .
फिर क्या फर्क है - वो आज हो या कल .


आने वाले का जश्न बाद में -
पहले मेरे अनुत्तरित -
प्रश्नों के तो उत्तर दो .
नवागंतुक का स्वागत बाद में -
पहले मुझे तो चलता करो .

वर्ना याद रखना - मैं अपने
गुजर जाने का शौक
नहीं मनाऊंगा - आने वाले के
काँधे पर चढ़ कर फिर चला आऊँगा .
 चलो डूबने वाले पत्थरों से - ही पुल बनाये
तब तो मुमकिन है - समन्दर से
शायद जीत जाए .
मत कहो - सबका काम
यूँ ही तमाम होता है .
मरने वालों/ डूबने वालों का भी
तो इतिहास में नाम होता है .
यह अंतिम - सुबह शाम
इस निरे बुद्धू - वर्ष के नाम
फिर ना कहना - फिर कोई बताएगा नहीं
गया ये वर्ष तो फिर - लौट के आएगा नहीं .
फेंक दो पत्थरों को पानी में
कुछ तो द्विस्ट हो कहानी में .

तेरे मेरे बीच बहती ये नदी -
चुप नहीं - बहूत कुछ कहती है.
किनारे दूर दूर है लेकिन - इन्ही
के बीच कहीं छुप के वफ़ा रहती है .
आवाज़ में असर हो तो - दुआ कबूल होती है जरुर
वर्ना घुट के रह जाती है - चीख भी नक्कार खाने में .
किसी को क्या बदलने चला है तू - अब छोड़ यार
उम्र लगती है असर होने में - बांसों पे फूल आने में .
तेरे जज्बात को समझता हूँ - मैं
पर अभी छोटा है  - तू बड़ा हो जा.
सफ़र लम्बा है - रास्ते मुश्किल 
घुटनों के बल रेंगने को छोड - अपने
पैरों पे पहले  खड़ा हो जा . 
मीर मेरा पडोसी था -
मोहल्ला मीरासियों का था .
घर कान्हा का - वृन्दावन
दबदबा देवदासियों का था.
 
 
 
 
 
 

Thursday, December 29, 2011

गाँधी का नया अवतार

पूरे हिंदुस्तान में केवल
एक जिन्दा आदमी - या फिर
मान लें की पूरा मुल्क
मुर्दों की बस्ती है .

कह रहें हैं लोग - की
इस मायने में लोकपाल -
एक उपलब्धि है .

यहाँ स्तुति गान से ही - फुर्सत
कहाँ की सोचें - विचारें
इस मुए लोकपाल को
किस किस के सर पर देके मारें .

एक आदमी अपना नाटा कद
राजनीति के झूले पर -
पींगें ले लेकर बढ़ा रहा है .
कैसे कहते हो की -
गाँधी का नया अवतार
आपके सामने आ रहा है .

भूलने की आदत डाल - ये
इतिहास से एक और नया गाँधी
मत निकाल ( अभी पुराने से तो
फुर्सत पा लें ) उसके उतराधिकारी
वंशजों को तो पहले निपटा लें .

Tuesday, December 27, 2011

पहला ही चक्कर है - अभी और फेरे हैं .

जो ना टकराए कभी-पर्वत सुमेरों से 
उमड़ घुमड़  - गहराए ना सिन्धु की मुंडेरों से 
तटबंध ना तोड़े  जो - पवन के झकोरों से 
तूफां के मौसम में हम लहरों से खेले हैं .
  
जो मिला साथ चले - कदमो से कदम मिला  
दूर तक चले जो साथ - वो फासलों के मेले हैं .
क्या तूने - झेला है , तूने क्या सहा यार
रिश्तों की भीड़ में  - हम बिल्कुल अकेले हैं .

फुर्सत नहीं पल भर - चलना तो है हरपल
एक खेत सींचा है - अभी आगे बहुतेरे हैं .
थकना नहीं है मुझे - रुकना गंवारा कहाँ 
पहला ही चक्कर है - अभी और फेरे हैं .

सूरज की कौन कहे - चंदा भी मौन रहे .
अंधियारी रात - सारे भुवन को घेरे हैं
दीपक प्रकाश पुंज - चांदनी बिखेरे हैं
निपटना है उनसे मुझे - जो मन के अँधेरे हैं . 


Friday, December 23, 2011

दिल की बात करते करते

दिल की बात करते करते  -
ये दिल हाथ से जाने लगा है .
तमाम जिन्दगी - के सफ़र
का एक एक वाकया - नजर
के सामने आने लगा है .

जीने की बात कहता हूँ -
और हर पल मर रहा हूँ -
ये मर्म आज कुछ -
ज्यादा सताने लगा है .
काश ना - आखिरी हो
ये कविता मेरी - आज
खुद पे से एतबार जाने लगा है .

फलक पर चाँद है तो सितारे भी होंगे -
आस्मां में उड़ने को -
आज जी चाहने लगा है .
ऐ मेरे मेहरबान दोस्त सुन -
बादलों ने  मुझको - चुनौती दी है
आज इनके पार जाने को
मन इतराने लगा है .





Wednesday, December 14, 2011

क्षणिकाएं

शब्द ये हैं कमाल के यार
प्यार से बोलो - निहाल हों जाएँ
कई खुद में सिमट जाएँ - कई
अपने -आपे से बाहर हो जाएँ .


बोल कडवे हों - मगर सच कहना
जमीं हिल जाए - पर तू डटे रहना .
मान ले तू अगर मेरा कहना  - झूठ
कहना नहीं - सच को सच कहना .


तू मेरा आज है  - 
और वो  कल था .
मेरा क्या -मैं तो 'कल'
बीता हुआ कल हो जाऊं .  


प्रकाश - की बात पर 
चाँद सूरज - तारे
सब फकीर से मौन हैं .-
तभी दीपक ने विनीत भाव
से पूछा  -  ये अँधेरा कौन है  ?


जो टूटे कौन से थे -
सितारे मौन से थे .
बात आकाश की है -
चाँद देगा जवाब .
लिखा था ख़त मिला नहीं -
है झूठ सरासर -
ये और बात है - की
तुम ना जवाब दो .

कहते हैं हर सवाल का जवाब नहीं होता
अब क्या जवाब दूं मैं - तेरे सवाल का .
एक पल - जो मिला
सदियों के गिले गए.
जज्बात के आँचल में
प्यार के पैबंद -फिर
फुर्सत से सिले गए .
किसके थे - अब याद नहीं
यहाँ ना जाने -
किस किस के हो चले .
थक जाओगे - रुक जाओ एक पल
ये जिन्दगी के रस्ते - अनंत हो चले .
चलते चलते -निरंतर इस
भूलभूलैया में हम खो चले .
रुक गया था एक पल -को
बस यूँ ही - चलूँ आगे बढूँ .
सच हो के ख्वाब हो -
ना जाने कौन हो तुम .
आओ चलें - इसी बहाने
धुप का तकिया - गर्म
लिहाफ में छिप जाये  .
या फिर - मन में बिसूरते
ग़मों को - गंगा में 'बहाने'
तो चलो चलें गंगा नहाने.
जाड़े की ठंडी - वीरान
कोहरे में लिपटी -
ठिठुरती शामें -
मन में जाने कैसे कैसे -
उजड़े से अहसास जगाती हैं.
सन्नाटे बोती सी - लबों पे
एक लाचार सी चुप्पी उगाती हैं .
एकांत - सितार सा बजेगा फिर
मन चाहा गीत गुनगुना - ना .
फिर किसी रोज बात करेंगे हम -
तू अभी यहाँ से चला जा ना .
जी खोल के हंसा मैं - खुद अपने आप पर
फिर उसके बाद - मुझ पे हंस ना पाया कोई . 
ये तेरी दुआ थी - या प्यार
जो मैं कल भी था - और
आज भी हूँ - यार .
सच हो के ख्वाब हो -
ना जाने कौन हो तुम .
 
 
  
 
 
 


 

 







Tuesday, December 13, 2011

ये सिरफिरा चाँद - पागल है

ये सिरफिरा चाँद - पागल है
पर नहीं अनजान .
चन्द्रप्रभा के दुखों से - आखिर
क्यों नहीं परेशान .

सुन , तुझ से क्या -
कहती है चांदनी - जो 
बादल हवाओं में अटकती -
धरती पर आने को भटकती .
क्यों नहीं उतरने देती - इसे
ये प्रचंड सुर्यप्रभा - जमीन पर .

और तभी - सुबह के
अंदेशे में - लौट जाती है -फिर
वापिस चंद्रलोक को .  
ये क्रम अनंत काल से  - चल रहा है
रात हो रही है - दिन निकल रहा है .

Saturday, December 10, 2011

तुम एक आदमी हो

तुम एक आदमी हो - झंझावात आंधी नहीं
तुम अन्ना हजारे हो पर महत्मा गाँधी नहीं .

हजारों साथ चलते थे - जब वे घर से निकलते थे
सत्याग्रही हर कदम पर उनके साथ साथ चलते थे .
अकेले आपकी तरह - चने से भाड़ में नहीं जलते थे.
एक 'बाबा' आपको इतना ज्यादा क्यों खलते थे .

वैसे आपकी इच्छा है - आपकी मर्जी है
पता नहीं 'बाबा' से आपको क्या अलर्जी है .
सफलता का श्रे अकेले लेना - साफ़ साफ़ खुदगर्जी है .

ये जान लो - चाहो तो सच मान लो -
एक लहर - सिर्फ नदी सी बहती है 
तूफान नहीं उठाती - तट से दूर नहीं जाती
सभी का संग साथ कर लो -हम भी
बीच मझधार ना डूबें और
तुम भी पार उतर लो . 

इतने 'शायदों' के बीच - एक और शायद .

उफफ्फ्फ्फ़ ...ये
इतने 'शायदों' के बीच -
एक और शायद .

अब बस भी करो -
अंतरे बदल दो - भगवा
ना सही हल्दी से रंग दो -
छोटा - बड़ा या तंग हो - पर
अब चोला बसंती रंग हो .

शायद अन्ना - सुभाष है
ये कैसी बेमेल आस है - ये
इतने दूर के ध्रुव -क्या इतने
पास -पास हैं .

अन्ना को अन्ना ही रहने दो - चाहे
क्षीण सी लहर है - पर इसे यूँही
दोनों किनारों के बीच बहने दो .

जो गाँधी सुभाष ने सहा इन्हें भी
तो थोडा सा सहने दो .
लोगों को क्या है -
लोगों को कहने दो .

Wednesday, December 7, 2011

ये क्रांति के रथ

ये क्रांति के रथ -
ये रामलीला मैदान के जलसे .
ये उजड़े उजड़े से राजपथ .
भूख से फाका करते लोग -
(अनशन नहीं )
आत्महत्या करते हैं .

इनपर भी मुकदमा चलाओ -
या अन्ना के बराबर में -
अनशन पर बैठाओ - मरना
जरुरी है -तो लोकपाल के लिए मरो .
ये गधे - सिर्फ अपने लिए क्यों मरते हैं .

क्षणिकाएं

इस पत्ती को छोड़ दो -
इसे थोडा छांट दो .
क्या बकवास है - ये
खरपतवार हैं -यार
इन्हें तो जड़ से ही काट दो .



इन बूझते चिरागों से -
हम क्यों उम्मीदें लगाये बैठे हैं .
आप जानते हैं - घुप्प अँधेरे में
हम कबसे आये बैठें हैं .
गले थक जायेंगे - हलक पक जायेंगे
अब तो जयकारा लगाना छोड़ दो .
जिंदाबाद - कहने से बच ना पायेंगे - ये
मौत से शर्तें लगाना छोड़ दो .
शब्द नापते तोलते हैं - फिर बोलते हैं
इशारों में समझ लो - तो कुछ और बात है .

ऐसा क्या हुआ...? 
जो...ऐसा ख्याल आया ...!! 
हलक से सारी -
ख़ामोशी निकाल आया ...!!

बड़े थे हौसले दिल में - चाँद तक मन की उड़ान थी
तीर थे हाथ में - पर किसी दूजे के हाथ में कमान थी .
कभी अहसास होता है -
तू हर दम पास होता है .
कभी तू भी नहीं मैं भी नहीं -
दसों दिशाएं चुप - सारा भुवन मौन है .
सोचता हूँ फिर ये तीसरा शक्श कौन है .
ना कोई कसम थी - ना ही थी मनुहार
आखिर मैं यहाँ - क्यों चला आया यार .
सच ना सही तो - एक झूठा ख्वाब ही सही
इतना ही बहूत है मेरे जीने के लिए - यार .
अब आइनों में कोई चेहरे नहीं होते
बिके हुए लबों पे अब पहरे नहीं होते .
गलत हूँ तो बता देना मुझे - सुना है
शमशीर के जख्म अब गहरे नहीं होते .
 
 
 




 
 





कविता कलम से - नहीं बन्दूक से निकलती है

सभी कहते हैं -
मैं कविता लिखता हूँ - पर
क्या जज्बात शब्द ओढ़ लें तो -
कविता बन जाती है -
या भाव निर्लज होकर
सरेराह बिखर जाएँ  -
तो कविता होती है -
ये तमाशा है जनाब -
मनोभावों का दिखावा -
इसे सच मे कविता नहीं कहते .

कविता कलम से - नहीं
बन्दूक से निकलती है .
दिलों की आग दीये सी नहीं
मशाल सी जलती है -
हवा साथ दे तो फिर देख -
कैसे क्रांति की पुरवाई -
तूफानी जोर शोर से चलती है .

Tuesday, December 6, 2011

लो अब आस्मां में भी पहरे

रोक सकते हो तुम - मुझे
मेरे पांवो को .
कैद कर सकते हो -
क्या उडती हवाओं को .

ये असली आग उतना कहाँ जलाती-
जितनी विचारों की आग - जिस्म को
हरारत - दिल को तपिश दे जाती है .

इससे बच सकता है तो बच -
भाग सकता है तो भाग .
ये जंगल की आग - तेरे घर को  
जला ना जाए कहीं -
इसमें जलकर स्वाहा
ना हो जाए यहीं  . 

लो अब आस्मां में भी पहरे -
यक़ीनन -तुम निपट अज्ञानी -
निरे बुद्धू ठहरे - पहले
जमीन को तो संभाल ले .
दफ़न पुरखों को तो -
इससे निकाल ले .
 
लूट ना जाए कहीं - तेरा घर
तेरा कारवां - ये तख्तो ताज.
शाहजहाँ गए - मुमताज़ की चिंता कर .
क्यों उसकी कब्र खुदवा रहा है -
ताज नहीं बनते बातों से -
क्यों बेसर पैर की उड़ा रहा है .

 
 

Sunday, December 4, 2011

नट नहीं - नटनागर की बात कर

अच्छा आदमी  - वो
बहूत अच्छा - किरदार था.
जाने क्यों मुझे उससे महूब्ब्त
बहूत सा प्यार था .
 
ये बहरूपिये  -  बहुआयामी
जीवन जीते हैं - जाने कैसे 
बन जाते हैं हमारे प्रेरणास्त्रोत -
हमारे आदर्श -नेता/अभिनेता .

पर शाश्वत कुछ भी नहीं -
ये नट-नटी के खेल -
ख़त्म होते ही हैं .
फिर कैसा दुःख कैसा विषाद .

जीवन की सच्चाइयों से
रूबरू हो - साक्षात्कार कर.
अभिनय नहीं है जीवन -
नट नहीं -
नटनागर की बात कर.

Saturday, December 3, 2011

कैसे जाऊं उस पार

कैसे जाऊं उस पार -
यहाँ सागर नाव -
लहरें - और तुम हो .

सूर्य की -
स्वर्ण रश्मियाँ लेकर
करूंगा क्या - की
मेरे चाँद तुम हो .

प्रेममय मेरा संसार - कैसे
जाऊंगा उस पार - सोचो यार
बतलाओ करूँ क्या .

पैरोल की अवधि ख़तम -
है चंद साँसे शेष - अब 
मुझे जाना पड़ेगा .

वापिसी के सजे हैं  यान -
निश्चित है महाप्रयाण -
अब जाना पड़ेगा . 


Thursday, December 1, 2011

ये दुनिया चलती नहीं

ये दुनिया चलती नहीं -
कागजी नोटों के व्यापार से
कभी फुर्सत नहीं मिलती - तुझे
रार -तकरार से .

चीखो पुकार - आलमे
दस्तुरे जहाँ हैं - सब भागते
फिरते हैं -  दिले बेजार से .

किसको कहूं रुके  - जो ठहरे
एक पल यहाँ - ना जाने कितने
दूर रास्ते हैं - मंजिले यार से .

थक जाएगा ,गिर जाएगा
तू एक दिन यहाँ - तैयार
जनाजे हैं - बड़े बेक़रार से .

रुकना नहीं मुमकिन तो -
अहिस्ता चला करिए - ठोकर
ना वक्त की लगे - किसी तलबगार के .

रोता हुआ आया यहाँ - रोता
ही जाएगा - हंस कर बिता
संग - पल मिलें जो जानिसार के . 

Tuesday, November 29, 2011

हमसा कोई था नहीं

हमसा कोई था नहीं
तुमसा कोई मिला नहीं .
क्या करते  - फिर
साथ तो एक होना ही था .

ना बादल बरसे - ना खेत
तरसे - नदिया थी ना साथ
फिर कोई बरसे की ना बरसे.

उसने सुनी नहीं   - मानी नहीं -
ना थी कोई कथा - कहानी नहीं .
दर्द हम सब के एक साथ - चले
पीर अपनी सी लगी  - बेगानी नहीं.

तू गज़ब लिखता तो है - पर
इसे पढता है कौन  - तू भी चुप
जमाना भी मौन - अब
इस बौझिल सन्नाटे को-
सिवा तेरे मेरे - आखिर तोड़ेगा कौन.




Saturday, November 26, 2011

मेरे नाम से पुकारो तुम .

ये वो कुछ और नहीं -
बस मुझे - मेरे
नाम से पुकारो तुम .

यहाँ - वहां कहीं नहीं -
बस - केवल
मेरी तरफ निहारो तुम .

जगह कम है - दिल में उनके
बस मेरी तरफ - आराम से
पाँव अपने पसारो तुम.

वहां मौसम - ना रौनक है
यहाँ -मेरे नजदीक आओ
झूम कर बहारो तुम .





 

Thursday, November 24, 2011

क्षणिकाएं

टमाटर को और मत दबा यार-
नाजुक है पर कपडे ख़राब कर देगा.
सहनशक्ति का आंकलन मत कर
ये हिन्दुस्तां है - कोई तमाचा जड़ देगा .

बाँध नदियों पे बनाये जाते हैं
सागर पर बने तो पुल भी बह जाते हैं .
कौन बांधे समंदर को यार - इसके
सैलाब में तो इतिहास गोते खाते हैं .
अवाम से डरते हो तो फिर भीड़ में आते क्यों हो
इतने ही भले हो तो फिर थप्पड़ खाते क्यों हों .
चलो कोई तो है जिसने जनता को
एक नया हथियार दिया -
ज्यादा सोचा ना समझा
और थप्पड़ मार दिया .
चलो गाना गायें - अमरीकी राग पर
मनमोहन के सुर में सुर मिलाएं .
बेस्वाद खाने से उब गए हम - चलो
अमरीकी ढाबे में चल के खाना खाएं .


 
 

Wednesday, November 23, 2011

रूप, रस, रंग नहीं

रूप, रस, रंग नहीं - अंग नहीं संग नहीं
नीरस जीने की अब कोई उमंग नहीं .
बिना पतवार के मैं पार जाऊं अब कैसे
झील से ठहरे जल में उठती कोई तरंग नहीं .

ये एक मुकाम पे आकर के रुक गए कैसे
बहूत दुश्वार पहुंचना जो - थक गए ऐसे  
जमीं चलती है  चाँद चलता है - कलुष घटता है 
सुबह होती है और शुभ्र  दिन निकलता है .

रात होने को है और सफ़र अभी बाकी है 
ये सरे शाम अलावों को तुम जलाओ मत
मंजिले दूर हैं -   यूँ  थकके बैठ जाओ मत
काफिले ठहरते नहीं - तुम भी रुक जाओ मत .


Sunday, November 20, 2011

शिखर पर बैठे हुए - ये किसके चहरे हैं .


शिखर पर बैठे हुए -
ये किसके चहरे हैं .
मुंह पर नकाब डाले - हैं
राम जाने क्यों इतने पहरे हैं .

मंजिल तो नहीं है - फिर 
इतने लोग यहाँ क्यों ठहरे हैं .
ये इतना चिल्लाते क्यों हैं -
क्या हम इतने बहरे हैं .

इस सभा में सब मौन क्यों हैं -
क्या कोई मर गया है - या
दिल के फासले बढ़ा गया /कम कर गया है .
गूंगे -बहरे अंधे हैं फिर भी  
चिंतन में क्या इतने गहरे हैं .

भीड़ तमाशाई तो है फिर भी
हाथों में पोस्टर - और 
जुबान पर ककहरे हैं - 
मरे हुए लोगों की - हर 
बात पर जय बोलते हैं 
बड़े अजीब - ये कफ़न ओढ़े 
मरे हुए से चेहरे हैं .

Saturday, November 19, 2011

धर्म की जय हो .

धर्म की जय हो . 
अधर्मियों का नाश हो .
देश का कल्याण हो - चहुँ
दिशी शुभ्र प्रकाश हो .

दिलों में - प्रभु का वास हो
स्वयं पर इतना विश्वास हो .
अपने कभी दूर ना हों - सभी
आस पास हों .

अँधेरे छंट जाए - दुखों की
बदली घिरी ना रहें - हट जाएँ
भव बाधा पार हो -
सत्य की जीत हो -
अरियों पर वज्र प्रहार हो .

प्रफुल्लित सा मन हो आज -
खुशियाँ ही खुशियाँ हो - दुखों का
हर तरफ - तिरस्कार हो .
ऐसी सदिच्छा है - ऐसा
सुहाना मेरा देश संसार हो .



कभी कभी मौन भी - काटता है

कभी कभी मौन भी - काटता है
अपना साया भी खुद को डांटता है .
ऐसे में कोई  - कहीं से आ जाए 
भर दोपहर में - बदली बन छा जाए.

पर ये होगा नहीं - क्यों की यहाँ
केवल मैं हूँ- और बोझिल तन्हाई है.
उसके आने की बात - किसने
ना जाने क्यों चलाई है .

कोई नहीं आएगा कहीं से - यूँ ही
वक्त गुजर जाएगा शायद - यूँही
मौसम की बात जाने दो - अश्क
बरसायेगा ना बादल - यूँही .







 

Wednesday, November 16, 2011

हाँ हम बुतों को पूजते हैं

हाँ हम बुतों को पूजते हैं -
आदमी तो बात बात पर -यूँ
ही सरे आम खड़े खड़े धूजते हैं .

न्यायकर्ता -कोमल
बदन-मन नहीं होता .
देने को तुझे भगवान के पास
कोई धन- जतन नहीं होता .
लोग कहते भी हैं - ये तो पत्थर हैं
इनके मन नहीं होता .

फिर कौन तुझे देता है - क्या
वो कभी किसी से कुछ लेता है -या
तेरे कर्म का उसके पास कोई लेखा है
या फ़राख गिरी से हरकिसी को -जब
चाहे मांगे बिन मांगे देता है .

सच तो ये है - वो देता जरुर है
पर झोली के हिसाब से - या फिर
पुण्य कर्मों के प्रताप से .
चींटी को कण भर और हाथी को 'मण' भर 
इसमें किसी को क्या गिला  - सब को
उसकी औकात के हिसाब से मिला .


  

Tuesday, November 15, 2011

कल तक यहाँ बस्ती थी मकाँ थे

कल तक यहाँ बस्ती थी मकाँ थे
पस्त पर मस्त लोग थे - अचानक
ये बियेबां कहाँ से उग आये .
ये जंगली बून्टें  मैंने तो नहीं उगाये .

खेत खलियान के बीच  - ये
कंक्रीट के बीज किसने बोये -
ये विलायती कीकर किसने लगाए .
कहीं वे अंग्रेज तो वापिस नहीं लौट आये .

भ्रम सा होता है - शर्म भी आती है
ये मेरा देश है - ये उसकी पौद
ये उसकी माटी है - चंद
खरपतवार नष्ट करने में 
किसी की जान -क्यों हर समय
निकली - निकली जाती है .

बांसुरी नहीं बजती - कहीं दूर
डी.जे की कनफोडू आवाज़ -
मस्तिष्क से क्यों टकराती है -
और देहाती जुबान - अंग्रेजी
आखिर किस लिए हो जाती है .




  





Monday, November 14, 2011

तू बरखा की बूंद

तू बरखा की बूंद  - मैं सागर का पानी
झुके आसमां सी - वो अल्हड जवानी
ना कोई कथा - ना थी कोई कहानी
जहाँ था मिलन - ना थी कोई रवानी .  

वो हिम पर्वतों से चली मस्त ऐसे
किसी परिंदे को मिले पंख जैसे -
बढ़ी वेग से - बात कोई ना मानी
कहीं ना रुकी - मिलने सागर से ठानी .

शहर गाँव - छोड़े , वो तटबंध तोड़े
वो बहती चली - मिले राहों में रोड़े .
थी कोई कशिश - खींचती थी उसे वो
ना रुकना गवारा - चली वेग से वो .

प्रणय था पर अभिसारिका वो नहीं थी 
मिलन के जतन में वो बढती चली थी
रुकी ना झुकी वो तो उन्मान्दिनी थी 
पवन वेग सी , कभी गज गामिनी थी  .

मिलन कैसा था वो - मैं अब क्या बताऊँ
सिमट कर नहीं - लट बिखरती चली थी.
वो प्रियतम से अपने लिपटती चली थी .
वो मां गंगा नहीं एक अल्हड नदी थी .

 




मैंने बचपन को - जाते देखा है

मैंने बचपन को - आते नहीं
बस जाते देखा है
कब चला गया - पता ही नहीं चला  .

लगा हम एक दम से बड़े हो गए .
ऊँगली पकड़ चलते हुए - ना जाने
कब अपने पैरों पे खड़े हो गए .

जब छोटा था तो -
जल्दी बड़ा होना चाहता था .
छोटा होना - मुझे
बिलकुल भी नहीं भाता था .

अब बड़ा हो गया हूँ - तो
फिर से धूल में खेलते हुए -
माँ को - खिजलाते हुए .
देखना चाहता हूँ .

पर मेरा आज , मेरे कल से
बहूत ज्यादा बड़ा है .
ऐसा नहीं होगा - जानता हूँ
क्यों की मेरा प्रतिरूप - आज
मेरी ऊँगली थामे खड़ा है .



Sunday, November 13, 2011

अब अकेला रह गया हूँ

करोड़ों से हजारों में - और
अब अकेला रह गया हूँ .
तुम्हें अहसास है -मैं
क्या कह गया हूँ .

कहाँ गए सब लोग -
ये क्रांति का कैसा चमत्कार है .
देश में अकेला मैं भलाचंगा-
बाकी सब बीमार हैं .

कहाँ से लाऊँ भला - एक
बाबा या एक अन्ना - पूरी
बारात तो साथ है - पर नहीं है
इसमें कोई एक अदद बन्ना.

बैंड- बाजा - घोड़े हाथी
यूँ तो पूरी फ़ौज है.
सैनिक मरते रहते हैं - वैसे
सेनापति की फुल फुल मौज है .

गांधारी -ध्रतराष्ट्र मंगलगान
गा रहें हैं - यूँ खुद को भरमा रहें हैं
राज्याभिषेक की तैयारी जोरों पर हैं
दुर्योधन के कलयुगी अवतार-
तशरीफ़ ला रहें हैं 

Friday, November 11, 2011

मजारों पे जलता दीया ढूँढता हूँ

मजारों पे जलता दीया ढूँढता हूँ
हर इंसामें मैं एक खुदा ढूँढता हूँ .

ये आदम की बस्ती - में हमसे हजारों
नहीं मिलता कोई -किसे  मैं पुकारूँ
तुफानो में मैं - नाखुदा ढूँढता हूँ.

सिकंदर बहूत हैं - कलंदर नहीं हैं
प्रभु हो जहाँ ऐसे - मंदिर नहीं हैं.
हूँ भटका हुआ -  रास्ता पूछता हूँ .

ये पीड़ा की कश्ती - मिले ठौर कैसे
इस काली अमा को - मिले भौर कैसे
तारों से  - सुबह  का पता पूछता  हूँ .

जहाँ - में ये मेरा वतन खो गया है.
अभी तो यहीं था - अब ना जाने कहाँ हैं
हर नक़्शे  में - मैं हिन्दुस्तां ढूँढता हूँ .

जो टूटे भ्रम - साथ तुम मेरे आओ
हरेक देशवासी की पीड़ा - बटाओं
मैं कदमो के अपने निशाँ ढूँढता हूँ .
 

 

गर मशाल हाथ में नहीं

गर मशाल हाथ में नहीं - तो बस
एक टांग पर मुर्गा बन खड़े रहो -
या चुपचाप अपने घर में -
निष्प्रयोजन पड़े रहो .

बचाने कोई नहीं आने वाला तुम्हें
वक्त फूल मालाएं भी चढ़ा देगा -
इस इंतजार में तस्वीर से
यूँही मत जड़े रहो .

जुए का दाव नहीं है - जीवन
ये उसी का होता है - जो लड़कर
इसे सर करता है - वर्ना काल तो
अवश्यम्भावी है - हर आदमी
मौत -बेमौत यहाँ मरता है .




जिन्दगी भी अजीब है -डूबती जाकर वहां है - जहाँ से साहिल बहूत करीब है .

जिन्दगी भी अजीब है -डूबती
जाकर वहां है - जहाँ से
साहिल बहूत करीब है .

लहरे हवाओं का - कभी
बुरा नहीं मानती - तुफानो
से लडती तो हैं - पर कभी रार नहीं ठानती.

एक हम हैं की चार कदम - चले
और बैठ जातें हैं - मंजिलें वहां से ही
शुरू होती है - जहाँ पहले पहल 
परिस्थितियों से हम मात खाते  हैं .

उपवास पर नहीं है सूर्य - अनशन
नहीं करता चाँद - कंदीलें लोग
सरे शाम से ना जाने क्यों जलाते हैं .

चाँद के  -हुस्न में अब वो
कशिश नहीं होती - ये बूढ़े लोग
ना जाने क्यों - चांदनी से यूँही जले जाते हैं . 


Thursday, November 10, 2011

ना परेशां हो गर

ना परेशां हो गर -
मुसीबतें पहाड़ हैं  - क्या हुआ जो
सामने सिंह की दहाड़ है  .
जंग जीतना मकसद है -तो
फ़िक्र कैसी - तेरे संग
इतने सारे फेसबुक के यार है .

Monday, November 7, 2011

सारे के सारे आज अन्ना हो गएँ हैं क्या

बेखबर दुनिया से यारो - बेखबर से हम .
ना कोई मिलने की ख़ुशी - ना बिछुड़ने का गम .
दिवाली - कभी तो ईद - कभी कोई खाली वार
बेमज़ा ख़बरें भरी हैं - अब क्या पढ़ें अखबार .

ढूँढें किसी को जाके कोई  - खो गया है क्या
बेख़ौफ़ कहीं जाके कोई - सो गया है क्या .
मेरा वतन क्या आज लन्दन हो गया है क्या .
सारे जहाँ को यार जाने हो गया है क्या .

किस्मत तुम्हारी ठीक थी - जो बच गए हो यार
बादल मेरी तकदीर जाने धो गया है क्या .
बहकी हुई -सी बात जाने कैसे कह गया
शायद ना जाने आज मुझको - हो गया है क्या .

बाकी ना कोई शय बची पूरे मौहल्ले में
मैदाने रामलीला में अनशन हो गया है क्या .
संता नहीं बंता नहीं - पंडित ना मौलवी
सारे के सारे आज अन्ना हो गएँ हैं क्या . 

Friday, October 28, 2011

कभी कभी - खुद पे दया आती है

कभी कभी - खुद पे दया आती है
और मैं निरीह सा हो जाता हूँ .

सोचता हूँ तो - कहीं खो जाता हूँ .
कभी अपना - और ना जाने
किस किस का हो जाता हूँ .
जो मेरे नहीं हैं - मैं हाथ जोड़के
उनसे क्षमा चाहता हूँ .

बहक गया हूँ - अलसुबह
माफ़ कर देना मुझे - यारो 
क्या कह रहा था - ना जाने
क्या-क्या कह जाता हूँ - इस लिए
अक्सर अकेला सा रह जाता हूँ .

छोड़ भी - गंभीर मत हो ज्यादा 
जाने दे - सोचने से क्या फायदा  
खुमारी रात की -उतरी नहीं
शायद मैं कह गया कुछ ज्यादा .


 

Thursday, October 27, 2011

एक मासूम - छुईमुई सी लड़की

( प्रिय सुनीता पाण्डेय उर्फ़ गुडियाको सस्नेह समर्पित )

एक मासूम - छुईमुई सी लड़की
बात बात में रुठती- मनती .
खेलती साथ - कभी लड़ाई ठनती.
साथ रहे बरसों - कभी बनती बहूत
कभी बिलकुल भी नहीं बनती .

वैसे दिल के करीब तो है -
पर अब बहूत दूर रहती है .

माँ आज उसके - आगमन पर 
पलके बिछा रही है .
एक नंबर की चुगलखोर -
आज मुझसे मिलने घर आ रही है .








 

चलो फिर से शुरू करें

चलो फिर से शुरू करें -
मंजिलों के पते - खोज लायें  .
साथ सूरज भी देगा जरुर -
आओ बूढ़े चाँद को -
सौर की भट्टी में- पहले तपायें 
और कुंदन सा दमकाएं .

बुझे तारों से ना रोशन होगा -
ये धुंधलाता जहाँ  - आ
माटी के दीपक को - अब 
अन्धकार से लड़ाएं .






Wednesday, October 26, 2011

कहीं कोई तो है

कहीं कोई तो है इस बेमुरव्वत जहाँ में 
जो बरबस मुझे - याद करता तो है  .

थके क़दमों के सफ़र में - बेमन से ही सही
साथ साथ गुजरता तो है  - बेरंग हो चुकी
जिन्दगी में - सतरंगी रंग भरता तो है  .

जाने क्यों आज याद आ रहा है मुझे - वो
अनजाना , अनदेखा दोस्त - लगे सपना सा  .
भले हो सपना सा -फिर भी मेरा अपना सा.

जो मिले तुम्हे - यहाँ-वहां आते जाते कहीं
सच खबर करना - रह रहकर बहूत याद आता है .
बिछुड़े मुद्दतें हुई - अब मिलने को दिल चाहता है .



Saturday, October 22, 2011

क्षणिकाएं

रब ने कोई ऐसा बनाया ही नहीं - 
मैं इंतज़ार करता रहा -
कोई आया ही नहीं .
किसी और के ख्वाब में ना सही-
अपने ही सपनो में खो जाएँ - 
ना सही कोई अपना - चलो 
हम ही किसी के हो जाएँ .


आकंठ गरल - हलाहल
यही तो है मेरे यार तुझे पीना .
अमृत की लालसा - व्यर्थ
मृत्युलोक में - जहाँ मरना
आसान है - पर बहूत
मुश्किल होता है जीना .
रजत शिखर सी तिमिर तोडती - चन्द्रप्रभा
हो कोटि सूर्य सी - रश्मि विहंसती रविप्रभा.
अन्धकार ना रहे - ज्योतिर्मय दसों दिशा
तड़ित - लड़ी सम जगमग दीपक की आभा .
प्रज्वलित दीपशिखा सदा हमसे कहती हैं -
नहीं तिमिर हो शेष - जहाँ पर हम रहती हैं . 
प्यार का अहसास - यूँ
बहूत नाजुक सी डोर है - एक
तरफ तुम - हो और दूसरी तरफ
कह नहीं सकता - मैं हूँ
या फिर कोई और है .
एक वो हैं जिन्हें जन्नत भी रास आई नहीं
एक हम उम्रभर जहन्नुम में बड़े मजे से रहे .   
ठीक से देखा है ना जाना तुमको
मिल गया अच्छा बहाना तुमको
अभी रुक जाओ - फिर बन जाना
कभी अजनबी .
 
भूखों से - फाकों का हुनर मत पूछों
अब किसका नाम लूं - जो बताये
मैं भूखा क्यूँ हूँ ?
जुगनुओं को सूरज मत कहो - तकलीफ होती है
माटी के दीये का जलना क्या टिमटिमाना क्या .
जलाना ही है तो बुझे सूरज को जला -
की रोशन हो सारा जहाँ - फ़क्त दीया तो
तेरे घर को रौशनी देगा.
दसों दिशाएं - सीए हुए लब 
मन की बातें कौन सुनेगा - अंतर
की पीड़ा को तेरी - अबतो
केवल मौन सुनेगा . 

 

Tuesday, October 18, 2011

तू भी दे दे श्रधांजलि

तू भी दे दे श्रधांजलि -
ना सही प्यार -
आखिर दिवंगत से कौन
रखता है रार .

अंग्रेजों के बाद - नए माई-बाप
पुराने 'सर' नए लाटसाब
कभी तो मरने ही थे - दुःख कैसा
निश्चिन्त हो सो जा - नवजागरण
की वेला में कमसे कम
इस कदर मातम तो मत मना.

क्या हुआ जो अभी वेंटिलेटर
पर अंतिम घड़ियाँ गिन रहें हैं .
अमा यार वैसे तो मर चुके हैं
बस चमचे अंतिम यात्रा की
तैयारी कर रहें हैं .

देखना कितनी धूम से
निकलेगी -ये यात्रा
जमाना बड़ी- हैरत से देखेगा
ये जनाजा और - हमारी
दूसरी आज़ादी का जूनून .  
या जश्ने आज़ादी - जब नहीं
बचेगी इन बदनुमा जिस्मों पर
एक भी चिंदी - खादी.

ये देश तेरे बाप का नहीं है


ये देश तेरे बाप का नहीं है -
की जैसे चाहे चला लो .
ना ही हम भेड़ हैं कि -
चाहे जिससे और
जैसे चाहे हंकवालो .

शेरों के लिए -पिंजड़े नए
इजाद मत कर - फिजूल की
बातों में अपना- और देश का
वक्त - बर्बाद मत कर .

इन नौटंकियों से कुछ होने-
हूवाने वाला नहीं - जनजागरण
और रथ यात्रा - बेकार जाएगी
इस तरह से तो तेरे चमचों की फ़ौज
यक़ीनन चुनाव हार जायेगी .

कुछ नया सोच - नया कर
कुर्सी नीचे से निकल ना जाए .
बेहतर तो है - किसी दुश्मन से
(पाकिस्तान ज्यादा मुफीद रहेगा)
रार ठान - या सीधे सीधे लड़ मर .

शायद कुछ समय - और चिपक
जाए कुर्सी से फेविकोल की तरह .
पर ये टोटके ज्यादा दिन -
काम आने वाले नहीं .
शाम डूबने को है - तेरा सूरज
भर दोपहर में बुझ ना जाए कहीं .

Monday, October 17, 2011

हर ख्वाहिशों से दूर

हर ख्वाहिशों से दूर -
चुपचाप - बिलकुल अकेले
कोई मिला ही नहीं- ऐसा
जो मुझे अपने साथ ले ले.

कितने अजीब से लोग
कितनी अजीब सी दुनिया
सबकी खबर रखने वालों को
खुद की खबर कहाँ .

जिन्दगी भर - कुव्वतें नापते
तोलते रहे - सीने में
बुलंद होसलों को टटोलते रहे .
बंद दरवाज़ों को खटखटाते रहे -
खोलते रहे - अपनी कभी नहीं
जो मिला उसकी जय बोलते रहे .

पर नहीं मिला - कोई भी
अपने जैसा अक्ष - जो भाजाए
दिल को ऐसा शक्श - पर
नहीं छोड़ी चाँद को छूने की आशाएं
ना समझ में आने वाली  - वो
प्यार की भाषाएँ -परिभाषाएं .

अब कैसे कहूं - बिना कहे कैसे रहूँ
तू ही कह दे - वो सब जो कभी
कहा नहीं गया - वो दर्द के सागर
जो आज भी यहाँ वहां - सब जगह
वैसे ही लहरातें हैं - आजकल
हम अपने पांवों पर चलकर नहीं 
उसमे डूब कर अपने- अपने घर जाते हैं .




Friday, October 14, 2011

नौटंकियों के देश में

नौटंकियों के देश में - बहुरूपिये
कदम कदम पर - नापते तौलते
पहले सोचते फिर बोलते .
हर आम और ख़ास को टटोलते.

गड़बड़ा जाते हैं - समीकरण
जब अर्जुन को - कर्ण ललकारता है
युधिष्ठर - जुआ जीतता है
भारत महाभारत से हारता है .

द्रोपदी- कपडे की चिंदी  के एवज़ में
कृष्ण को कोर्ट में घसीटती है -
भीड़ सरे आम कुलकलंक को -
बड़ी कचहरी में पीटती है .

ये क्या हो रहा है - इस मुल्क का
अवाम क्या बिलकुल बेसुध सो रहा है
पर याद रख - सारे घोड़े नहीं बिक़े
बचे अभी काफी हैं - अमन की
चिंता तो कर  - पर अब युद्ध पर माफ़ी है .




Thursday, October 13, 2011

चलो चले - रामलीला मैदान

चलो चले - रामलीला मैदान.
स्टेज पर चढ़ कर - जरा
ढूंढे तो सही - लौटे  हुए लोगों के
क़दमों के निशान.

दिवाली आने को - दशेहरा गए
दिन बीते - जो हुआ उसे भूल जाएँ
अगले साल - फिर से होगी रामलीला -
जिसे देखने फिर से आयें .

क्या पता कोई - सरफिरा 
अन्ना या बाबा - फिर ऐंठ जाए
मम्मी और भैया से परमिशन ले
और रामलीला मैदान में
अनशन पर बैठ जाए .


अरे तुम तो जलधर थे

अरे तुम तो जलधर थे-
धीर अडिग प्रशांत - यार
कैसे हो गए अशांत - बातों से
खामखाह तूफ़ान उठाने लगे .

अपनी सीमाओं का पता नहीं
दूसरों को उनकी सीमाएं -
क्यों बताने लगे .
अब तो लगता है - अन्ना का
संग भी - लोगों को तुम्हारे
सोचे समझे 'बहाने' लगे .

ये जनता की कोर्ट है -प्यारे
तारीख नहीं - सीधे इन्साफ करती है
ये भीड़ है - कहाँ किसी को माफ़ करती है .
ऐसे रोज रोज पिटोगे - इज्ज़त का
फालतू में कचरा करवाओगे .

आस्मां में उड़ने की छोडो -मियां 
अभी तो पाँव के नीचे - जमीन है
ऐसे ही दो चार एपिसोड- और हुए
तो इससे भी जाओगे .



Friday, October 7, 2011

ये अकेला चाँद - सारी रात

ये अकेला चाँद -
सारी रात ग़मगीन सा -
मौन हो टहलता है .
ना जाने मेरी तरह से 
इसका भी दिल -
क्यों नहीं बहलता है .

ये नदी दिन रात -
सतत यूँ ही बहती है -
अपनी ही मस्ती में -
ना जाने कैसे बेफिक्र सी
मस्त रहती है .
जुबान नहीं है फिर भी
कुछ तो कहती है .

ये मेरा क्षीण स्वर  ही सही
तुम तक जाके -
लौट आता तो है .
ये बंसी की मधुर धुनपर -
कोई सारी सारी रात
कुछ गाता तो है .

बहूत उमस है आज
कही दूर लगता है -
बरसा होगा सजल मेघ -
अब हर रोज मेरी -
छतके चक्कर लगाता तो है .

 



 

Wednesday, October 5, 2011

आओ दशहरा मनाएं

दशाअवतार - नहीं
बस राम हों - और
हम राममय हो जाएँ .
चलो 'सर' करलें -
दस सर -दस दिशाएं
आओ दशहरा मनाएं .

आक्रान्ता के भाल पर
उस काल विकराल पर
नए लेख लिखें - पुराने मिटायें
आओ दशहरा मनाएं .

ना भूलें - नारायण -नर को
सहस्त्रा कवच के एक एक -कवच को
भेदें - तिमिर की स्याही को-  चलो 
अगणित सूर्य की रश्मियों से नहलाएं .
आओ दशहरा मनाएं .

बुझे हुए चाँद तारों को- बदल दें .
राख के ढेर में दबी - चिंगारियों को 
कोटि कोटि सूर्यों की मानिंद जगमगायें .
दीवाली बाद में फिर कभी - पहले
आओ दशहरा मनाएं .

Sunday, October 2, 2011

खुली आँख के सपने

दिन दहाड़े - खुली आँख के सपने
त्रिआयामी होते हैं - भले
श्वेतशाम हों - ना सही रंगीन .
जिनके टूटने का - मन में
डर नहीं होता - सच तो ये है की
रात का सपना - मर ही जाता है
कभी अमर नहीं होता .

दिन के उजाले-के सपने
सूर्य की मानिंद  - इनकी
चमक कभी फीकी नहीं होती - नहीं
कैद होते पलकों के घेरों में .
नहीं टूटते कभी नीम अंधेरों में .

ये कभी स्वयम स्फूर्त
कभी प्रयास से - और कभी
देवकृपा से सच हो जाते हैं .

   

Friday, September 30, 2011

किसी ने कहा - क्यों लिखते हो .

किसी ने कहा - क्यों लिखते हो .
इस सड़ी गली व्यवस्था पर -
प्रेम पर ग़ज़ल - गाओ महुब्बत
के अनकहे फ़साने -
रोने बिसुरने के तो मिल जातें है  -
सेंकडों नहीं - करोड़ों बहाने .

सोचता हूँ - सभी ठीक ही तो कहते हैं .
क्या करूँ - ये आंसू तो हमारी पलकों से  -
ढलकते नहीं  हरदम ढीठ की तरह
जमें रहते हैं .

इन्हें किसी नदी- समंदर में
डाल दूं- या पूरी ताकत से
आस्मां की तरफ उछाल दूं  -पर
ऊपर उछाली हर चीज -
वापित आती तो है - धरती की
आकर्षणशक्ति - ये बतलाती तो है .

नहीं बच सकते - हर सवाल से
जो कदम कदम पर - पीछा करते हैं .
जो मुझे मरने नहीं देते - ना
खुद ही आत्म हत्या करते हैं .

कैसे असम्प्रक्त रहूँ - बताओ तो सही
इन जिन्दा सवालों को  - पहले किसी
अतल पाताल में दफनाओ तो सही .
इतने ही सुखी हो तो - वो खुश रहने
का मन्त्र मुझे भी सिखलाओ तो सही .
 

Thursday, September 29, 2011

जो मन के अँधेरे कोनों को

जो मन के अँधेरे कोनों को
शुभ्र प्रकाश से भर दे .
जैसे मुर्दा शरीर को -
पुन: जीवित कर दे .

आओ - उस परम पुरुष को
आर्त स्वर में पुकारें .
उसे ही धरती -आकाश
दसों दिशाओं में देखें/निहारे .

खोजें उस - परम
उत्तम पुरुष को .
जो कहीं भी हो - पर
अपना अस्तित्व - हम
सभी में विरूपित कर दे .
परमानंद की ज्योति
रोम रोम में भर दे .

Tuesday, September 27, 2011

" मेरा भारत महान "

" मेरा भारत महान "

ये किसके चेहरे हैं -
हम अंधे हैं की बहरे हैं -
ये कौन लोग हैं जो - चंद सिक्कों
की खातिर - जनपथ राजपथ पर -
काले गोरे विदेशियों के पीछे लट्टू से
घूमते -चक्कर लगाते हैं . 

शमशीर उठे ना उठे - भारी
भरकम देश का बोझ -बैट सा 
उठाये - दुनिया भर में चक्कर
लगाते हैं - राम जाने ये कैसा खेल है
की ११-१२ आदमी - खेल के नाम पर
लाखों - करोड़ों को बेवकूफ बनाते हैं .

हम इतने फालतू हैं की महीनो के
हिसाब से - मैदान या टीवी पर टकटकी
लगाते हैं - रन देश के बनते हैं - और
धन ये बटोर ले जाते हैं .

जो अहिंसा के नाम का खाते हैं -
मजलूम और निरीह भीड़ पर - सबसे
ज्यादा डंडा गोली -वो ही तो चलाते हैं .
वैसे बापू नाम के शक्श को -
अपना और देश का बाप -और 
धर्मपिता कहते -बताते हैं .

लप्म्पत, बेईमान ,चोर लुटेरे ही तो
जनतंत्र के सबसे बड़े गोल घरमें
जगह पाते हैं - जहाँ आम आदमी
कहीं 'ख़ास' ना हो जाए - उस को 
'आम' रहने रखने के -तौर तरीके
नियम कानून बनाये -सिखाये जाते हैं .

अलां फलां - बाबा बापू - महंत
धर्म के नाम पर अपनी दूकान चलाते हैं .
सरनाम होते हुए भी - बदनाम लोगों
की गिनती में आते हैं - मजे की बात 
धर्म की ध्वजा - सबसे पहले वोही तो
अपने हाथों में उठाते हैं - जिनके
खाते - स्विस बेंकों में पाए जाते हैं .

एक हम  हैं - इन चोरो की बरात के
दुल्हे  - एक बिना सींग की गाय
जिसे जब चाहे - जैसे चाहे कोई भी
कहीं से आये और दुह ले .

बिना चूंचपड के - हर पांच साल में
खुद पर अत्याचार करने का -
इन्हें - मुख्तारनामा लिखते हैं - और
हम उतने ही बुधू हैं -जितने की दीखते हैं .

Monday, September 26, 2011

लेकिन - तुम कह दो

लेकिन - तुम कह दो
मैं सह लूँगा - जो कहना है
अपने जज्बात से -
मैं खुद कह लूँगा.

परेशां ना रहो - कुछ तो कहो
बुतों से यूँ तो ना घिरे रहो .
अकेले - खो जाओगे
जो मुझ से अलग - अपने को
दूर खड़ा पाओगे .

छोडो  - वक्त की ठोकरें
इन्हें अभी और खाने दो .
सितारों से भी आगे - एक
नया जहाँ बसाने दो - अरे
उन्हें मत रोको - जो
जा रहें हैं उन्हें जाने दो .

कोई कमी रह गयी शायद
ये सपने - सोते हैं बहूत
इन्हें यूँ ही सो जाने दो
बहूत रोती हैं ये ऑंखें -
इन्हें थोडा और धुंधलाने दो -

अँधेरे - शाश्वत तो नहीं होते
इस जमीन को - सूर्य के
इसी तरह चक्कर लगाने दो .
भौर तो होनी है - होगी जरुर
एक बार जरा  - मुझे
रौशनी में तो आने दो .


Sunday, September 25, 2011

खुद पर रोने की वजह कुछ भी -नहीं

खुद पर रोने की वजह कुछ भी -नहीं
दूसरों पर हंसने के सौ बहाने .
कोई चाहे माने ना माने -पर
हम सचमुच में हैं दीवाने .

जरा सा बोध हो जाए - वैसे ही
जैसे कोढ़ में खाज हो जाए .
रोने बिसुरने का मौका मिले -
भले जिन्दगी बर्बाद हो जाए .

आखिर हम -बात बेबात
रोते क्यों हैं - जानते हुए की
दुख के कारण होंगे - सेंकडों 
खुश होने के बहाने हजारों .

याद रख - ख़ुशी और गम
एक ही घर से आते हैं - जो
'उस' एक ही के द्वारा -
भिजवाये जाते हैं .

विचारो तो सही हम - खुश
होकर - या दुखी होकर ज्यादा
पछताते हैं ?  खुद सोचिये -
या फिर हम बताते हैं .

मानो ना मानो

मानो ना मानो -पर
बचपन में - मैं
सचमुच काफी बड़ा था .
नियम -कायदे कानून की
चौखट पकडे खड़ा था .

पर यौवन ने सारे - कायदे
फाड़ डाले - भविष्य की
चिंता से दूर - सब कुछ
हो गया बस राम हवाले .
ध्यान कुछ इतर चीजों में
बँटा था - ये सच है  उन दिनों
मेरा  - कद थोडा घटा था .

आज सर की कालिख - शुभ्र
हो गयी  - मन की स्थिरता
तन की अशुधि - हद तक धो गयी .
अब मैं फिर से बड़ा हूँ -
दंड के सहारे ही सही - पर
पूरी तरह से -अपने पैरों पर खड़ा हूँ .


Wednesday, September 21, 2011

हम जैसे भी हैं - ठीक हैं

हम जैसे भी हैं - ठीक हैं
हमें दूसरों से क्या - वो
चाहे कैसे भी हैं .

बदलना - बहूत कठिन
दूसरों को - अपनी राह
चलना आसान होता है
खुद हम नहीं खुदा - तो
दूसरा कैसे शैतान होता है .

शेर के ठीक ऊपर मचान होता है
हाथ बन्दूक हो तो भी - हरेक
आदमी कहाँ पहलवान होता है .
आम आदमी तो बस - यारो
जैसे बराए नाम होता है .
 

जाने क्यों अच्छे लगते हैं .

मुस्कुराते हुवे चेहरे - कहकहे
लगाते - हँसते गाते हुवे लोग -
जाने क्यों अच्छे लगते हैं .

बंद पलकों में - रंग बिरंगे
सतरंगी - मचलते हुए सपने
दूर तक - जहाँ तक नज़र
चली जाए - एक छोर से दूसरे
तक फैले मेरे अपने -
जाने क्यों अच्छे लगते हैं .

मैं आम से - ना जाने कब
ख़ास हो जाता हूँ - जब
बेआवाज दबे पाँव - कोई
नाजुक सा - हवा का झोका
मुझे - प्यार से सहला जाता है .
और बरबस - तुम मेरे अपने हो
कह कर - मुझे यूँही बहला जाता है .


वो जो महकी

वो जो महकी - की रात की रानी
शर्माती सी रही रात भर.
हरारते शरारतें -या
फिर दोनों - अब कैसे
कहें - हुई मुद्दत के -अब
कुछ भी याद नहीं .

पुरानी याद के - वे पीले पात
अब भी रह रह कर चटखते हैं .
वो एक सैलाब - समन्दर सा
ढलक जाता है - एक कतरा सा 
बन इन आँखों में - अब भी
मालूम नहीं जाने - क्यों
कैसे कहें  - कहाँ से चला आता है .

ये रूह - ये जिस्म अब जर्जर हो चला 
कुछ कहीं था - ना जाने कहाँ खो चला .
भटकती सी रहती है - उन
गुजरे हुए लम्हों में जिन्दगी .
अब मैं हूँ - और बस मेरी तन्हाई है .

Tuesday, September 20, 2011

वाह क्या शांति है

वाह क्या शांति है -
अवाम और हुक्मरान
दोनों खुश हैं .
अन्ना अपने घर गए -
रामलीला ख़तम -लोग
मैदान खाली कर गए .

पर दशहरा पास है -
रावण के मरने की -
बाकी - बची एक
धूमिल सी आस है .

पर दिवाली तो
दशहरे के बाद -
मनाई जाती है .
रावण अभी भी जिन्दा है -
देखते हैं - दीवाली इस बार
कैसे आती है .

Monday, September 19, 2011

अब ऐसी भी क्या जल्दी

अब ऐसी  भी क्या जल्दी  -
किश्तों में धीरे धीरे मरते हैं .
जीना कोई मजाक नहीं है - यार
जाने दो  - टुकड़ों में ही सही
हर पल आत्महत्या करते हैं .

क्या कहा - हम जिन्दा है .
हम तो वैसे भी - अपनी इस
बेहाल जिन्दगी पर शर्मिंदा है .
क्यों - दुखते घावों को कुरेदते हो .
अब संदेह की नजर से -हरएक
इंसान को क्यों देखते हो .

अभी मैं पिछले पल में ही
तो मरा था - फिर भी जिन्दा हूँ.
मौत के इस गंभीर मजाक पर
सच मानिये मैं बेहद शर्मिंदा हूँ .
 
ये अल -सुबह का मजाक नहीं
बीती रात का सच है - जान लो
हम जिन्दा दीखते जरुर हैं - पर
हैं नहीं - अब तो मान लो . 

वैसे भी कौन - जीता है
तेरी जुल्फ के सर होने तक
फ़ना हो जायेंगे सरकार -
हम तुम को खबर होने तक .

हमें झूठे सपनो के -
डरावने सच - मत सुनाइए
किसी रोज रात को नहीं
दिन में चले  आइये.

पर छोडो हटो - जाने दो इससे
तुम्हे क्या फर्क पड़ता है .
तुम्हारी बला से - कोई
कोई जिन्दा रहें - या मरता है . 

Thursday, September 15, 2011

बस एक इल्तिजा है



बस एक इल्तिजा है -
मेरे आसूं बस देखे - तू
किस और को ना दिखलाऊं .
स्वीकारो प्रभु विनती -
हार जाऊं तो बस -तेरे
काँधें पर ही सर टिकाऊ.

वे अश्रु अमर हो जाएँ
जो तेरी याद में - मैं बहाऊं .
चाहता है दिल - अभी
उड़कर तेरे पास चला आऊँ .

तू कौन है मेरा - अब
किस बिधि सब को -समझाऊं .
मेरा तो सर्वस्य ही तू हैं -
किस नाम से पुकारूँ - क्या
कह कर तुझे बुलाऊं .

कैसे मिलन होगा -
नहीं जानता - ये मूढ़
क्या  युक्ति करूँ - किस
जतन से इस दिल को- अब
तू ही बता - समझाऊं .

किसी ने स्नेह विह्ल हो कहा

किसी ने स्नेह विह्ल हो कहा -
हमें यूँ अकेले छोड़ कर- मत
जाना -कभी पार .

कभी मत जाना - तुम
क्षितिज के उस पार -जब
तुम्हारा यहीं  - बसता है
सकल प्रेम संसार .

सोचता हूँ - कैसे जा सकूंगा
उस महाप्रयाण पर -
तुमसे मिल के आज जाना -
बंधन मुक्त होना-
कितना कठिन है यार .



Tuesday, September 13, 2011

मैं सुंदर नहीं हूँ .

आन्तरिक सौन्दर्य भले हो.
कला कौशल भी होगा -
पर जानता हूँ ये बात की 
मैं सुंदर नहीं हूँ .

कभी कभी इर्ष्या होती है
देखकर कोई -
सुंदर चेहरा जो -
दिखा देता है मुझे आइना
जैसे मौन में भी
कह जाता है - 
तुम सुंदर नहीं हो .

एक दिन मैंने -
उससे कहा -
तू भी तो काला है .
पर कितने बड़े
दिल वाला है.

कितने सुंदर
असुंदर को समेटे
अपने आप से लपेटे  -
कितना मेहरबान है -
सारी दुनिया -
पूरा ब्रह्माण्ड जानता है -
तू ही तो भगवान है .

उसने कहाँ चन्दन में
भले होगी सुगंध-पर
उससे तो लिपटे रहते हैं -भुजंग.
वो चन्दन आखिर -किसके
काम आता है - अरे पगले
सुबह शाम - बिन नागा 
मुझ जैसे काले को ही तो
लगाया जाता है .
 
ऐसे रंग का क्या करेगा -
जिस जल को कोई पी ना सके  -
आखिर तूझे क्या मिलेगा .
ऐसा सागर - बनकर.
तृप्त कर लोगों की प्यास  -
मैली माटी की सही -
गागर बन कर .

तुझे मैंने अपने जैसा
तो बनाया है -
और हर युग में तू ही तो
मेरे काम आया है .

गंगा चाहे मैली हो - पर
लाखों की प्यास बुझाती है
मरने पर यहीं से मोक्ष देती है -
और सबके काम आती है .

क्या फर्क पड़ता है - जो तू रंग
का काला है - अरे काले तो
कृष्ण और राम थे -
उनसे सुंदर होने के क्या -
किसी और के पास भी
कोई प्रमाण थे .

 

Sunday, September 11, 2011

ना जाने क्यों - आज तुझसे मिलने को दिल चाह रहा है

ना जाने क्यों - आज
तुझसे मिलने को दिल
चाह रहा है - बता मुझे -
बुला रहा है - या तू
खुद मेरे पास आ रहा है .

चल तू ही आ जा मेरे -
दोस्त मेरे भाई -
लोगों के लिए भगवान्
मेरे लिए तो माखन चोर-
काला कृष्ण कन्हाई .
मैं जानता हूँ - मेरी बात
किसी की समझ में नहीं आई .

पर क्या करूँ - मेरे दिल में  
ये भगवान नहीं - दोस्त की
तरह रहता है - मेरी सुनता है
अपनी कहता है - बस ऐसे
ही जीवन चलता रहता है .

मैं बहूत खुश हूँ - उस को पाकर
वो बहूत प्रसन्न है -
मुझे अपना कर .
किसी का आखिर - क्या
बिगड़ जाता है - जब मेरा जिक्र
उसके साथ आता है .

नर नारायण की तरह - हम
दो दीखते जरुर हैं - पर मानले
हम अनेक नहीं - बस एक हैं. 



Saturday, September 10, 2011

तेरे सामने -हमारी आखिर हस्ती क्या है

तेरे सामने -हमारी
आखिर हस्ती क्या है -
तेरे वैकुण्ठ के सामने - हम
इंसानों की बस्ती क्या है .

हमारी औकात क्या है - तेरे
सामने चींटी का वजूद भले हो -
हमारी बिसात क्या हैं .

मन में अहम् -भाव
आता तो होगा - तू ही
कर्ता तू ही करतार  -
करता है सबका बेडा पार .

तेरे मन में क्या होता है -
तब सचसच कह दे यार .
पर नहीं - तू तो करतार है
कर्ता कहाँ है - कर्ता  भी हम हैं
और भर्ता भी हम हैं .

तू कहाँ किस कारण में आता है .
करोड़ों हाथों का सञ्चालन
करके भी तेरा हाथ कब और
कहाँ - पहचाना जाता है .

पर नहीं हैं हम - कृत्घन
तेरे किये अच्छे के गुण गाते हैं .
बुरा हो जाए तो अपने कर्मों- या
तकदीर को दोषी बताते हैं .



पता नहीं कैसे - चलाते हो

पता नहीं कैसे - चलाते हो
किस तरह कर पाते हो -
ये सब - हम से तो ये
छोटा सा घर नहीं चलता .

और तुम सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड-
को आखिर कैसे चलाते हो .
राम जाने -अपनी ऊँगली पर
कैसे कैसे नाच नचाते हो - .  

कुछ तो बताओ - यार
इतना अच्छा-बुरा करते हो
हम इंसानों के साथ - फिर भी
भगवान कैसे कहलाते हो -
और सर्वत्र पूजे जाते हो . 

Thursday, September 8, 2011

मेघ फिर से गहराए

मेघ फिरसे गहराए-
सुखी धरा - की गोद में
सावन फिर फिर -लौट आये.

काश ये ऋतू बनी रहे-
लौट के ना जाये -
कहीं से कोई भीगता हुआ  -
मेरी कल्पनाओं में
यूँही चला आये .

तुम नहीं जानते -
मैं वर्ष भर - जोहता हूँ
बाट तुम्हारी - हे मेघ
मेरी पांति - उन तक
तू ही तो पहूँचाये .





थोडा कम खा - ज्यादा गम खा.

थोडा कम खा -
ज्यादा गम खा.
वो राजा हैं -
उनकी गलती भूल जा.
किसी नेता को -ऊँगली
मत दिखा .
तू आम आदमी है -
बाज आ - बाद में
बहूत पछतायेगा -
यार मान जा .



Wednesday, September 7, 2011

हाथ में लाठी नहीं - बस वर दो .

हाथ में लाठी नहीं -
बस वर दो .
अपने पांवों से -
खुद चल सकूं
बस ऐसा कर दो.

आपकी मदद नहीं -
आशीर्वाद की दरकार है .
यहाँ -वहां सब ओर
आपकी ही सरकार है .

आप चाहें तो हमें -
अपनी कृपा से तर कर दें
उम्मीदों के सूखे खेतों को -
जल से लबालब भर दें .

मुट्ठी भर नहीं - पूरे
खलिहान की दरकार है
आप दुनिया के कर्ता हैं -
आप ही सरकार -
आपकी ही सरकार है .
प्रार्थी तो - बस आपके
अनुग्रह का तलबगार है .

एक उपवन होगा - मन में एक सपना था

एक उपवन होगा -
मन में एक सपना था
फूलों का देश होगा .
अपना - केवल अपना
परिवेश होगा .

मैंने तो केवल - चंद
फूल बोये थे - 
ये केक्टस ,नागफनी -
कहाँ से उग आये .
कोई अमरबेल -क्यों ना
इन पर बेतरह छा जाए .

कोई राह पूंछता हुआ -
क्यों ना यहाँ आ जाए .
यहीं रह जाए और - हमारे
दिलों पर छा जाए .

हम भूल जाएँ - की
हम बरगद के बूढ़े -दरख्त
नदी किनारे के पेड़ हैं .

कोई मिल गया - शायद


कोई मिल गया - शायद
पुकारा था - उसने बड़ी
शिद्दत से मनुहार से
थके पंखों से -बड़ी
बेबसी में - बहूत प्यार से .

और आ गया था - वो
फ़रिश्ता - स्वर्ग से उतरकर
उस नन्ही जान के-
सपनों में रंग भरने - उसे
गिरने से बचाने- उसे
सहारा देने -ढाढस बंधाने
टूटते साहस को फिर से बढ़ाने.

डूबते को तिनके का सहारा काफी
फिर नए जोश में - आकाश की
ऊँचाइयों को नन्हे परों पर-
तय करने को - मिल गया था
विश्वास जो खो गया था .

कभी कहीं मिले तो

कभी कहीं मिले तो -
तुम्हें बताऊंगा कितने सपने -
मैंने तुम्हारे लिए बुने थे- तुम्हें
जरुर सुनाऊंगा -मेरा
इंतज़ार करना - तुमसे मिलने
जीवन में एकबार - मैं जरुर आऊँगा .

तुम कौन हो - कहाँ हो
कैसे हो - कुछ तो बताओ .
हो सके तो मुझसे मिलने - आज
ही चले आओ - मैंने
आज तक तुम्हारी कल्पनाएँ की हैं
कभी देखा नहीं .

जिन्दगी बहूत छोटी है - हम जिन्दा हैं
ये भी एक भ्रम है - तुम कहीं
आसपास हो - क्या इतना कम है .


 

कहीं कोई - आज भी बाकी है

कहीं कोई - आज भी बाकी है
प्रेम की क्षीण सी डोर - जो
जीने के लिए -मुझे
सोते से उठाती है .

एक स्मित की रेखा -आज भी
चेहरे पर - यदाकदा आ जाती है
कोई है - कहीं हवाओं में
उड़ती हुई - गर्द क़दमों से
आज भी लिपट जाती है .

मेरे होने का कोई तो -मकसद है
जो जीने को कहता है - बार बार
मौत मुझे छू के -यूँही तो
हर बार नहीं निकल जाती है .

कहीं से - कोई आएगा जरुर 
ये मेघों की उडती हुए -पंक्तियाँ
जाने चुपके से मेरे -कानों में
शायद ये कह जाती हैं .




Tuesday, September 6, 2011

अकेले ही - तय करने होते हैं

अकेले ही -
तय करने होते हैं
धुल भरे - उबड़खाबड़ रास्ते.
जिन्दगी के .

जहाँ ना आज का पता है
ना कल की खबर .
आने वाले कल की चिंता में
मर जाते हैं - गुजर जाते हैं
इस पर चलते चलते -लोग

कहाँ से आते हैं - और
फिर ना जाने कहाँ चले जाते हैं -
लोग - ये जिन्दगी की सड़क
एक अनंत - और अनवरत
कभी ना ख़त्म होने वाला-
सफ़र है जिन्दगी  . 


Thursday, August 25, 2011

आंधियां देश दुनिया घर नहीं देखती

आंधियां देश दुनिया घर नहीं देखती 
कोई पगडण्डी -सड़क शहर नहीं देखती 
जमीन से उठती हैं - और छा जाती हैं -
आसमान में या सारे जहान में .

किसी के घर आंगन - तक
आके लौट जाती हैं  
किसी महलनुमा घर के -खिडकियों 
दरवाजों तक की चूलें हिला जाती हैं. 

कभी कभी गलती से - किसी सही 
आदमी के इरादों में समां जाती हैं -
लौट कर - फिर कहीं नहीं जाती हैं .
और हर घडी यूँ ही तूफ़ान उठाती हैं .

कोई और बात करते हैं .

चलो इस अनशनी - अन्ना
को छोडो - यार
कोई और बात करते हैं .

जीने की बात बड़ी -फिजूल सी
लगती है -चलो
ना सही किसी और के लिए
अपने अपने लिए मरते हैं .

क़ुतुब मीनार - तो बंद है
कितना अच्छा ख्याल है - चलो
लाल किले की प्राचीर से -
कूद कूद कर आत्म हत्या करते हैं .

बड़ी प्यारी चीज होती है
जिन्दगी मेरे यार - चाहे
कितनी हो जाए किसी से रार.
मारने की तो सोचते हैं -
पर खुद कहाँ मरते हैं .

क्यों खटते हैं हम रात दिन -
इस पेट के कूए को भरने में -
जरा सोच फिर -क्या हर्ज है
अन्ना के संग अनशन करने में .

Wednesday, August 24, 2011

चलो बहूत हुई रामलीला

चलो बहूत हुई रामलीला  -
अब मैदान खाली करो.
मदारी की मौज -
और बंदरों की फ़ौज -
लंका की चढाई - अरे 
कोई कम तो नहीं है भाई. 

पर शुक्र है - अभी बादल है
पुरवा चल रही हैं .
जोश की बदलियाँ  - उमड़ घुमड़
समन्दर से - अभी भी
जल भर रही हैं .

वो देखों - अंधेरों से जो
पुरजोर लड़ाई लड़ रहें हैं .
लोग कहते हैं - ये जुगनू
सूरज के सामने -सरेआम
आत्मदाह कर रहें हैं . 

पर कुछ तो बात है - तीर
तुणीर सजे हैं -हर अर्जुन के
चाहे पांडवों के दो सौ - नहीं
बस दस हाथ हैं - विजयश्री
पक्की है - अरे हाँ श्रीकृष्ण
जैसा सारथि भी -तो उनके साथ है .



Tuesday, August 23, 2011

जन्म दिन की बहूत बहूत शुभकामनायें .....!!!!

"आस का विशवास का दीपक सदा जलता रहें.
हर्ष और आह्लाद से जीवन सफ़र चलता रहे.
हों सफल तेरे इरादे - खुशियाँ मिले संसार की
झोली इस फ़कीर ने  - सर्वस्य तुझ पर वार दी "

जन्म दिन की बहूत बहूत शुभकामनायें .....!!!!

ये भी अजीब पागल हैं

ये भी अजीब पागल हैं -
कौरव पांडवों से - सत्ता के
गलियारे में कुश्ती कर रहें हैं .
अच्छे खासे जिन्दा हैं -फिर भी
ना जाने -किस बात के लिए मर रहें हैं .

और ये अवाम - सुबह से शाम
रोती धोती - कब से सिसक रही है .
जिन्दा सी लगती तो है - पर
पल पल मर रही है - कैसी कैसी
उम्मीदें पाली थी - ना जाने क्या कर रही है .

कोई तरकीब ढून्ढ - अपनी औकात जता
नहीं चाहिए  चंद सिक्के - या क्षणिक नशा.
नकली राजा को - असली राजा की
एक बार तो ताकत दिखा .
प्रजा राजा की परिभाषा - एक बार
फिर से तो लिख जरा .

सवाल तो बहूत हैं - पर अभी शासक मौन है .

आस पास देखते भालते -
डन्डे में झंडा डालते -
बैठे बिठाये ना जाने
कैसे कैसे सपने पालते .
मदारी की मौज -
और पूरी फ़ौज .
नफीरी की धुन पर -
बंदर से नाचते.    
जय विजय के नारे लगाते-
सुबह शाम आते जाते -
आखिर ये सब कौन हैं .
सवाल तो बहूत हैं -
पर अभी शासक मौन है .  

Sunday, August 21, 2011

क्षणिकाएं

मेरी मिटटी - में जब खुशबुओं का वास है,
इस हवा से तो पूंछ - आखिर क्यों उद्दास है
अरे बुधू नहीं हूँ गैर कोई - ना पराया हूँ ,
जन्म से साथ तेरे - साथ आया हूँ .
नहीं समझा अभी तक कौन हूँ मैं  -
नहीं कोई और - मैं तेरा साया हूँ  
खुद की परछाइयों  से डर रहे हो -
बड़े नादान हो -क्या कर रहे हो .
ये सच है - या सच का भ्रम सा
सच में नासूर है - या मामूली वर्म सा .
प्रतिमा है -भक्त और भगवान भी
यार - लगता तो है कुछ कुछ धर्म सा .
ये सागर प्रेम रसरंग का - कूदो
और गोते खाओ - पछताओगे
तैर के किनारे पे मत जाओ .
मेरी बात जाने दो -
अपनी कहो ना .
जो मेरे हो तो - मेरे
पास ही रहो ना .
जो उतरा पार - क्या जाने
डूबने का मजा - क्या है .
आपने जाना तो सही - हमने
कहा क्या है .
 
 

 

Wednesday, August 17, 2011

सरे शाम - हमने दिया जलाया तो है

सरे शाम - हमने दिया जलाया तो है
मिजाज़ पुरसी को कोई चलके
दूर से आया तो है .

अब देखते हैं - वो क्या है- कैसा है
वो शक्श तेरे लिए कुछ लाया तो है .
बड़ी शिद्दत से मैंने उसे बुलाया तो है .

मैं खो गया था - सरे राह में
मेलों में झमेलों में - किसी ने
मुझे इससे मिलवाया तो है .

कल ख़त का जवाब भी - आएगा जरुर
किसी कातिब से- हुक्काम को
मैंने लिखवाया तो है.

ना सही हक़ - जरा सी लूट सही
दे दो इस गरीब को थोड़ी छुट सही.
मजमून काजीसे पढवाया तो है .

ये मोदी  - कुछ आदमी सा लगता है
खरा सिक्का है -  जैसे टकसाल से
अभी ताज़ा ताज़ा आया तो है .


Monday, August 15, 2011

लिखो - इतिहास में उसका भी नाम

लिखो - इतिहास में
उसका भी नाम - वो भी तो आया था
इस - देश दुनिया के काम .

उसे भी लिखों - जो आदमी
अभी अभी - रोटी के लिए
मर रहा  है - जी नहीं भूख से नहीं
मुझे बचाने के चक्कर में -जो
सरे आम फाका कर रहा है .

क्यों नहीं लिखते - उसका नाम
जो तुम्हारे सामने -आज जांबाज
दुश्मन की मानिंद खड़ा है -
और अपनी बात मनवाने पर -
बेतरह अड़ा है .

उनको क्यों इतिहास में - जबरन
डालते हो - जो बार बार
रण छोड़ कर भाग जाता है -
एक आम आदमी की दहाड़ सुन-
सोते से जाग जाता है .

कौन कहता है -
इतिहास गीदड़ों भभकियों
का - फरमान होता है -ये तो
सीधे सीधे - क्रांति का
बिगुल बजाने वालों का
आइना-ऐ -ऐलान होता है.

इतिहास से मजाक - कभी
बहूत महंगा पड़ जाता है.
कितने ही समय के केप्सूल
लाल किले में दबवा लो - सब
सरेआम उघड जाता  है . 


 

Sunday, August 14, 2011

करोड़ों बंद मुठ्ठियाँ

करोड़ों बंद मुठ्ठियों की ताकत
करती है इंतज़ार - बरसों से .
मसीहा कोई कहीं से -
आये तो सही -और हममे
छिपी ताकत का अहसास
कोई दिलवाए तो सही.
स्वयं को भूल चुके हम लोगों को
अपने आप से -कोई मिलवाये तो स
ही.

Saturday, August 13, 2011

ये कैसा बाबा है - जो मंदिर है ना काबा है .


ये कैसा बाबा है -
जो मंदिर है ना काबा है .
वो देखो चाकू सी -
पसलियों से कर रहा अपील -
एक इंच जगह मिले तो घूस जाऊं .
तेरी सारी अंतड़ियाँ - यहाँ-वहां
राजपथ पर ही फैलाऊँ . 

क्या मासूमियत है -
थोड़ी सी ही सही - जगह मिले
तो बैठ जाऊं तेरे अवसान के -
लम्बे लम्बे गीत पूरे हिंदुस्तान
को गा गा के सुनाऊँ .

गजब है - इस क्रांति के रंग
ऐसे तो नहीं देखे -उस
"महात्मा" के भी ढंग - जिसने
पूंछ पूंछ कर सरकार से - करी 
अवज्ञा या सत्याग्रह की जंग .

अरे कुछ करने की ही जिद है -
या बुढ़ापे की सनक है- रहने दे
हमे नहीं चाहिए ये सरकारी -
भीख में मिली प्रायोजित क्रांति -
हम ढून्ढ लेंगे कोई नया गाँधी .

कोई दूसरा उपाय निकाल लेंगे -
खुद को किसी और - अलग
नए साँचें में ढाल लेंगे .
पर अभी तो बस कर -
बहूत हुआ ये नाटक - कभी
मजबूरी ही पड़ गयी तो - भात
तेरे पतीले में भी उबाल लेंगे .

(मासूम अन्ना हजारे जी को सविनय समर्पित)


Wednesday, August 10, 2011

तीर किसी और का

तीर  किसी और का -
कमान किसी और की
खेत-खलिहान मेरे बाप का - तो
कैसे ये मैंढ किसी और की .
तेरी मेरी बात - ना सुनाऊं     
किसी और की .


छाडू ना कलाई  - चाहे माने 
ना मिताई   - मारूं  
या कूँ  मैं कन्हाई   - तेरी
गीता की कहाई - नहीं
बात किसी और की .

छन में बिगाडूँ- याको चक्करवीयू
फाडूं - नहीं छोडूं याकूं  मारूं .
फेरी काहे को बिचारूं - नहीं
मानू मैं तो 'हर' की  .

तेरो याही में - आराम
भाग - लेके या दूकान
खाली कर दे मकान -
और करो ना हैरान - वर्ना होगो
परेशान  - याही बात है फ़िक्र की .

(
ये चंद लाइने  उनके लिए जो
देश की व्यवस्था पर सांप की
तरह कुंडली मारे बैठे हैं )



Wednesday, August 3, 2011

प्रेम कहीं नहीं - बस घूँट दर घूँट गरल.

प्रेम कहीं नहीं - बस
घूँट दर घूँट गरल.
हर कहीं - बिखरे हुए से हम .
बीत जाती है उम्र -समेटने में  
जिन्दगी की कथा - नहीं
होती सीधी और सरल .

चलो पत्ते पे पड़ी  -
शबनम की बूँद - सावधानी से 
उठा ले - मिले जो फुर्सत तो
थोडा हंसले- गालें.

बुरा ना माने तो इन -छोटी छोटी -
दूर होती हुई खुशियों के -
बुझते दीये फिर से जला लें .  

अब आपसे क्या कहें - कल के
बच गए बासे ग़मों पर -खोखली
हंसी हंस लें -झूठे ही सही -
जी भर के कहकहे लगा लें .

कल का क्या है - कल तो काल
का नाम  है- एक रोज आएगा जरुर .
फिर भी - बेईमान होती
इस जिन्दगी को - उजड़ने से
कुछ तो बचा लें .


Saturday, July 23, 2011

आपके मौन को - शब्द दे सकूं

आपके जज्बात -
आप ही के मन की बात.
आपके मौन को - शब्द दे सकूं .
बस यही चाहता हूँ  .

मैं अलग नहीं  - खुद को
आपके भीतर -
आपमें ही कहीं देखना -
महसूस करना चाहता हूँ .

पता नहीं क्या हूँ - और
क्या करना चाहता हूँ -आपमें
ही कहीं छुप कर रहना चाहता हूँ .
आप समझ रहें हैं ना- मैं
क्या कहना चाहता हूँ .

अलग अलग भूमिका में -
हर बार  - इस संसार पट
पर दीखते रहना चाहता हूँ .

मैं हर किसी - हर एक में
रहूँ भी - और उसका हिस्सा
बन जाऊं - चाहे अपनी या
तुम्हारा कहानी- किस्सा बन जाऊं .

मौत से बहूत डरता हूँ -
जिन्दगी से अथाह प्यार करता हूँ .
तुम्हारे भीतर - तुम्हारी सोच में
रहूँगा तो - यकीन है
फिर मरूँगा नहीं .

शायद तुम्हारी याद में - तुम्हारी
हर बात में - जिन्दा रहूँ तो
अमर हो जाऊंगा  - जीते जी भी
और मर जाने के बाद भी .

Friday, July 22, 2011

जिन्दगी भी अजीब है

जिन्दगी भी अजीब है - चुप सी
रहती है कभी - कभी 
कोहराम हो जाती है.

बहूत अपनी सी लगती है - कभी
बरायेनाम  हो जाती है - भागती
है वेग से - चलते चलते 
कभी यूँ ही तमाम हो जाती है .

कभी हाशिये पर - कभी अर्धविराम
तो कभी पूरणविराम  हो जाती है .
बहुत ख़ास सी हो जाती है - तो
कभी बहूत आम हो जाती है .

आखिर इसके मायने क्या हैं -
शोर मचाते हुए आते हैं - रिश्ते
मानते हैं बनाते है -और
एक दिन चुपचाप- बिना कहे 
बिना बताये जाने कहाँ चले जाते हैं .


 

Thursday, July 21, 2011

सबका ध्यान रखते हो

सबका ध्यान रखते हो -
सबकी खबर लेते हो -
तुम कहाँ -कैसे हो -कुछ
अपनी भी खबर देते हो .

पर लेना नहीं है स्वभाव - सागर का
लौटा देते हो वापिस घनो को -
बरखा की बूंदे देकर -
बरसने को धरती पर .
क्योंकि तुम देव हो-
तुम केवल देना जानते हो .

हम कितने कृतघन हैं -
अब ये कैसे कहें .
पास तू रख नहीं सकता - यूँ
दूर तुमसे कैसे रहें .

पर ये कोशिश  - हमेशा से जारी हैं
अभी कल ही तो आये थे -यहाँ
आज फिर वापिसी की तैयारी हैं .

Friday, July 15, 2011

गीत ये फिर भी -मेरा बिलकुल नया है .


देखने में घिस गया है -
बात ये सच मान मेरी -
गीत ये फिर भी -मेरा
बिलकुल नया है .

ढून्ढ लाया था - समन्दर से
हजारों बार लाखों बार -मोती.
कह रहें हैं लोग - सच्चे की चमक
युगों तक कम ना होती .

तूने उनसे - उसने तुमसे
जो कहा है - शब्द फीके
पड़ गएँ होंगे- मगर जज्बात
ये बिलकुल नया है .
  
एक तन्हा आदमी कायर नहीं है
भीड़ के सैलाब में - घुस कर अकेले -
जो भी चाहे साथ होले साथ ले ले.
जय विजय का फलसफा -
सच मान ये किंचित नया है .




Thursday, July 14, 2011

खामोश संसद जारी है

खामोश संसद जारी है -
नयी गोरमेंट की तैयारी है .
चुप रहिये -बिलकुल मौन-
नाकाफी - जलूस-झंडे
बगावत के डंडे -नेताओं के
बड़े बड़े फंडे - सड़े टमाटर अंडे .
सब हैं - पर धीरे बोल प्यारे 
अभी संसद जारी है .

दिवाली पर तो नहीं डरता था

दिवाली पर तो नहीं डरता था
आज इतना हल्ला मचाता है .
अबे दो चार बम कोई छुटाए -
उनके धमाकों से -
तू क्यों मरा जाता है .
...
सब खेल है -सियासत है
पटरी से उतरी रेल है .
कितने मर गए - कौन सी
साली लंका ख़ाली कर गए .

अभी तो इतनी फ़ौज है -
चाहे दुश्मनों की मौज है .
चलने दे छोटे मोटे पटाखे -जब
मन आये ये पिटपिट बंद कर दीयों -
सालों के दो चार -थोबड़े पे धर दियो .

तू मर्द है - मर्द को दर्द नहीं होता
सिसकते तो जनखे हैं -आखिर
बिखरते तो माला के मनके हैं .

Tuesday, July 12, 2011

दस्तक है द्वार पर

दस्तक है द्वार पर - सिंह की पुकार पर ,
सोचना फिर कभी - शत्रु पर प्रहार कर .
ठाड़ा नहीं है सिंह - भय अरण्य पार कर
मरना गर है अभीष्ट -दुश्मन को मार कर .

कामना नहीं है मन्त्र - लड़ना है एक तंत्र
चाहिए कोई जो यंत्र  - फिर से  विचार कर .
शूरवीर ना सही कर्मवीर बन के देख  -
पतझर के मौसम में - बहार से तकरार कर .

भीगा सा सावन है - लथपथ है कीचड से
दल के दल कमलदल- खिले हुए है खूब .
मौन हुआ गीत है - अस्फुट से स्वर आज
करकट सा बिखरा है - उसे तू बुहार कर .

छत पर कौवा बोला - कौन आज आएगा,
सुख दुःख तो साथी हैं -जाने क्या लाएगा .
वक्त तो मेहमा है आज - स्वागत मे कैसी लाज
आरती की थाली - तू अब तैयार कर .

Friday, July 8, 2011

क्षणिकाएं

ऐसा भी होगा - उन्हें मालूम ना था
वर्ना आग में हाथ डालते ही क्यों .
हाकिम इतना जालिम है -गर पता होता
तो परमारथ का शौक पालते ही क्यों .

तेरा मनीआडर तो आया नहीं अब तक -यार
बेमुरव्वत मुझसे मेरे पैसों का हिसाब मांगते हैं .

मैं माटी का दीया - बाल तो दूं
अपनी आत्मा की बाती -और
सांसों का ईंघन इसमें ड़ाल तो दूं.
पर क्या भरोसा है ये दीया -
आंधी तुफानो में यूँ ही जलेगा - और
रौशनी का सफ़र अनवरत चलेगा .

 मुस्कुराना तो बड़ी चीज नहीं
खुल के कहकहे लगाता हूँ
हँसता हूँ - खुद पर या अपनी
बेखुदी पर यारो - कभी खुद से
खुदा हो जाता हूँ - और फिर
खुदा की बनाई इस दुनिया पर -
यारो मैं जम के तरस खाता हूँ . 


ना लूटना पसंद हैं - ना लुटना कबूल है 
ये और बात है - अपना अपना असूल है .

मैं गांधारी - मेरा बेटा राहुल ( दुर्योधन)



मैं गांधारी - मेरा बेटा राहुल ( दुर्योधन)
पूरे हिंदुस्तान पर भारी .
चल बेटा मनमोहन -खड़ा हो
और कर - ताजपोशी की तैय्यारी .
(सोनिया)

मैं क्या कहूं जी - आखरी बार
कब कहा था कुछ - अब तो
ठीक से ये भी याद नहीं .
अगर मुंह खोलता हूँ -तो
गले पर पंजे का निशान नजर आता है
बैठे बिठाये - प्रधानमंत्री  का पद मिले
तो कौन ठुकराता है -अब तो चुप रहने की
आदत हो गयी है - इसी में मजा आता है.
(मनमोहन)

कुत्ते तो हम भी हैं जी - पर
कोठी में घुसने वाले पर भोंकते हैं .
कुत्तों से सावधान वाले बोर्ड -
पिताजी घर के बाहर लगवा गए हैं .
सुना है युधिष्टर के साथ -एक कुत्ता भी
स्वर्ग पहुँच गया था -
तब से कुत्ते की योनी में आ गए हैं .
(दिग्गी)

(क्रमश:..)

Thursday, July 7, 2011

एक दिन और गया .

छोडो भी बीत गया -
रोकते पकड़ते - बस
अच्छा वो दौर गया .
एक दिन और गया .

जीवन की डोरी -
होती और छोटी,
साँसों की आहट-
धीमी मद्धम होती.
मृत्यु की -डगर पर -
प्राणों का दौर गया .
एक दिन और गया .

नभ में - जीवन पतंग
उडती पर पंख तंग -
हवाओं से ठनी- जंग .
मन के मरुस्थल में-
बादलों का शोर गया .
एक दिन और गया .

भीगे दृग - ढूँढ़ते हैं
राहों के - सर्प दंश
मन के - इस दर्पण में
विचरते अब नहीं हंस .
भटके अरण्यों में -
कहाँ मगर ठौर गया .
एक दिन और गया .

पल -छिन से भागते
दिवस शाम -जागते से सोते
हम हुए - तो क्यों हुए
काश हम ना होते .
कहने -सुनाने में-
जीवन का छोर गया .
एक दिन और गया .

Monday, July 4, 2011

तू भी उठ -पूरा ब्रह्मांड जाग गया

तू भी उठ -पूरा
ब्रह्मांड जाग गया
आसमान में छाया
तामसी अँधेरा
कब का भाग गया .

सुबह का सूरज
जाने  कब का -उठ जाग गया
क्या सोचा है -
निकल चल -लक्ष्य
बहुत पीछे छुट गया
बटोही जाने  कहाँ भटके
वर्ना यूँ -तो नहीं रह जाते
एक जगह अटके .

चल -साथ तेरे जमाना
खुद चला आएगा -जो
अकेला ही -अकेले आदमी
की लड़ाई लड़ जायेगा .

तेरा तारनहार -तुझे
जरूर बचाएगा -चाहे
अवतार लेकर -इस जमीन
पर फिर से आएगा .

बूढ़े हो गएँ इरादे

बूढ़े हो गएँ  इरादे
कफ़न से यदा कदा
सर निकालते .

देखते भालते- कहीं
कोई देख तो नहीं रहा .

सो जाते हैं ख्वाब -
बे -आवाज़  निरापद

अगली पारी -
नए साजो सामान
नए बेट-बाल  से खेलने
की तैयारी में .

मन कहता है -
चलो कगार पर आ पहुंचे
स्वर्ग की सात सीढियाँ
दिखने लगी हैं .

फिर नया जन्म लेगी
आकांक्षाएं - नए शरीर
के साथ .

फिर कविता ही क्यों .

अंतर में छिपे -जहर को
मैं क्यों दवा की मानिंद
कविता में उडेलता हूँ -
हँसते मुस्कुराते चेहरों को
क्यों कठोरता के आवरण
में धकेलता हूँ .

आखिर कविता - करता ही क्यों हूँ
किसलिए -किसके लिए -
मेरे सिवा इन्हें पढ़ेगा ही कोंन
कोई पढ़े भी तो क्यों -
आखिर क्या है इसमें
रंजन तो है -मनोरंजन नहीं है .

अपने को व्यक्त करने के
अनकहे को कहने के -
और भी तो ढंग तरीके हैं-
सहने के -
अकेले रहने के
और भी तो कारण हैं -
फिर कविता ही क्यों .

विष वमन को -अंतर तक
चीर देने वाले  चाकू -तीर को
कविता का नाम - क्यों देते तो यार !
सब बेकार -तेरा ये मन्त्र
ज़माने पर नहीं चलेगा यार .

अपने चिंता परेशानियों को
अंतर में रख -किसी से मत
कह यार - सब जायेगा  बेकार
फिर क्या फायदा -चाहे कविता हो
या मर्सिया -दोनों एक से लगते हैं यार !.