कहीं कोई - आज भी बाकी है
प्रेम की क्षीण सी डोर - जो
जीने के लिए -मुझे
सोते से उठाती है .
एक स्मित की रेखा -आज भी
चेहरे पर - यदाकदा आ जाती है
कोई है - कहीं हवाओं में
उड़ती हुई - गर्द क़दमों से
आज भी लिपट जाती है .
मेरे होने का कोई तो -मकसद है
जो जीने को कहता है - बार बार
मौत मुझे छू के -यूँही तो
हर बार नहीं निकल जाती है .
कहीं से - कोई आएगा जरुर
ये मेघों की उडती हुए -पंक्तियाँ
जाने चुपके से मेरे -कानों में
शायद ये कह जाती हैं .
प्रेम की क्षीण सी डोर - जो
जीने के लिए -मुझे
सोते से उठाती है .
एक स्मित की रेखा -आज भी
चेहरे पर - यदाकदा आ जाती है
कोई है - कहीं हवाओं में
उड़ती हुई - गर्द क़दमों से
आज भी लिपट जाती है .
मेरे होने का कोई तो -मकसद है
जो जीने को कहता है - बार बार
मौत मुझे छू के -यूँही तो
हर बार नहीं निकल जाती है .
कहीं से - कोई आएगा जरुर
ये मेघों की उडती हुए -पंक्तियाँ
जाने चुपके से मेरे -कानों में
शायद ये कह जाती हैं .
No comments:
Post a Comment