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Wednesday, September 7, 2011

कहीं कोई - आज भी बाकी है

कहीं कोई - आज भी बाकी है
प्रेम की क्षीण सी डोर - जो
जीने के लिए -मुझे
सोते से उठाती है .

एक स्मित की रेखा -आज भी
चेहरे पर - यदाकदा आ जाती है
कोई है - कहीं हवाओं में
उड़ती हुई - गर्द क़दमों से
आज भी लिपट जाती है .

मेरे होने का कोई तो -मकसद है
जो जीने को कहता है - बार बार
मौत मुझे छू के -यूँही तो
हर बार नहीं निकल जाती है .

कहीं से - कोई आएगा जरुर 
ये मेघों की उडती हुए -पंक्तियाँ
जाने चुपके से मेरे -कानों में
शायद ये कह जाती हैं .




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