" मेरा भारत महान "
ये किसके चेहरे हैं -
हम अंधे हैं की बहरे हैं -
ये कौन लोग हैं जो - चंद सिक्कों
की खातिर - जनपथ राजपथ पर -
काले गोरे विदेशियों के पीछे लट्टू से
घूमते -चक्कर लगाते हैं .
शमशीर उठे ना उठे - भारी
भरकम देश का बोझ -बैट सा
उठाये - दुनिया भर में चक्कर
लगाते हैं - राम जाने ये कैसा खेल है
की ११-१२ आदमी - खेल के नाम पर
लाखों - करोड़ों को बेवकूफ बनाते हैं .
हम इतने फालतू हैं की महीनो के
हिसाब से - मैदान या टीवी पर टकटकी
लगाते हैं - रन देश के बनते हैं - और
धन ये बटोर ले जाते हैं .
जो अहिंसा के नाम का खाते हैं -
मजलूम और निरीह भीड़ पर - सबसे
ज्यादा डंडा गोली -वो ही तो चलाते हैं .
वैसे बापू नाम के शक्श को -
अपना और देश का बाप -और
धर्मपिता कहते -बताते हैं .
लप्म्पत, बेईमान ,चोर लुटेरे ही तो
जनतंत्र के सबसे बड़े गोल घरमें
जगह पाते हैं - जहाँ आम आदमी
कहीं 'ख़ास' ना हो जाए - उस को
'आम' रहने रखने के -तौर तरीके
नियम कानून बनाये -सिखाये जाते हैं .
अलां फलां - बाबा बापू - महंत
धर्म के नाम पर अपनी दूकान चलाते हैं .
सरनाम होते हुए भी - बदनाम लोगों
की गिनती में आते हैं - मजे की बात
धर्म की ध्वजा - सबसे पहले वोही तो
अपने हाथों में उठाते हैं - जिनके
खाते - स्विस बेंकों में पाए जाते हैं .
एक हम हैं - इन चोरो की बरात के
दुल्हे - एक बिना सींग की गाय
जिसे जब चाहे - जैसे चाहे कोई भी
कहीं से आये और दुह ले .
बिना चूंचपड के - हर पांच साल में
खुद पर अत्याचार करने का -
इन्हें - मुख्तारनामा लिखते हैं - और
हम उतने ही बुधू हैं -जितने की दीखते हैं .
ये किसके चेहरे हैं -
हम अंधे हैं की बहरे हैं -
ये कौन लोग हैं जो - चंद सिक्कों
की खातिर - जनपथ राजपथ पर -
काले गोरे विदेशियों के पीछे लट्टू से
घूमते -चक्कर लगाते हैं .
शमशीर उठे ना उठे - भारी
भरकम देश का बोझ -बैट सा
उठाये - दुनिया भर में चक्कर
लगाते हैं - राम जाने ये कैसा खेल है
की ११-१२ आदमी - खेल के नाम पर
लाखों - करोड़ों को बेवकूफ बनाते हैं .
हम इतने फालतू हैं की महीनो के
हिसाब से - मैदान या टीवी पर टकटकी
लगाते हैं - रन देश के बनते हैं - और
धन ये बटोर ले जाते हैं .
जो अहिंसा के नाम का खाते हैं -
मजलूम और निरीह भीड़ पर - सबसे
ज्यादा डंडा गोली -वो ही तो चलाते हैं .
वैसे बापू नाम के शक्श को -
अपना और देश का बाप -और
धर्मपिता कहते -बताते हैं .
लप्म्पत, बेईमान ,चोर लुटेरे ही तो
जनतंत्र के सबसे बड़े गोल घरमें
जगह पाते हैं - जहाँ आम आदमी
कहीं 'ख़ास' ना हो जाए - उस को
'आम' रहने रखने के -तौर तरीके
नियम कानून बनाये -सिखाये जाते हैं .
अलां फलां - बाबा बापू - महंत
धर्म के नाम पर अपनी दूकान चलाते हैं .
सरनाम होते हुए भी - बदनाम लोगों
की गिनती में आते हैं - मजे की बात
धर्म की ध्वजा - सबसे पहले वोही तो
अपने हाथों में उठाते हैं - जिनके
खाते - स्विस बेंकों में पाए जाते हैं .
एक हम हैं - इन चोरो की बरात के
दुल्हे - एक बिना सींग की गाय
जिसे जब चाहे - जैसे चाहे कोई भी
कहीं से आये और दुह ले .
बिना चूंचपड के - हर पांच साल में
खुद पर अत्याचार करने का -
इन्हें - मुख्तारनामा लिखते हैं - और
हम उतने ही बुधू हैं -जितने की दीखते हैं .
हम उतने ही बुधू हैं -जितने की दीखते ह
ReplyDeleteWah Guruji....