मेघ फिरसे गहराए-
सुखी धरा - की गोद में
सावन फिर फिर -लौट आये.
काश ये ऋतू बनी रहे-
लौट के ना जाये -
कहीं से कोई भीगता हुआ -
मेरी कल्पनाओं में
यूँही चला आये .
तुम नहीं जानते -
मैं वर्ष भर - जोहता हूँ
बाट तुम्हारी - हे मेघ
मेरी पांति - उन तक
तू ही तो पहूँचाये .
सुखी धरा - की गोद में
सावन फिर फिर -लौट आये.
काश ये ऋतू बनी रहे-
लौट के ना जाये -
कहीं से कोई भीगता हुआ -
मेरी कल्पनाओं में
यूँही चला आये .
तुम नहीं जानते -
मैं वर्ष भर - जोहता हूँ
बाट तुम्हारी - हे मेघ
मेरी पांति - उन तक
तू ही तो पहूँचाये .
वर्ष भर - जोहता हूँ
ReplyDeleteबाट तुम्हारी - हे मेघ ||
खुबसूरत अंदाज भाई जी ||
बधाई ||
बहुत सुन्दर भाव।
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