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Sunday, September 25, 2011

मानो ना मानो

मानो ना मानो -पर
बचपन में - मैं
सचमुच काफी बड़ा था .
नियम -कायदे कानून की
चौखट पकडे खड़ा था .

पर यौवन ने सारे - कायदे
फाड़ डाले - भविष्य की
चिंता से दूर - सब कुछ
हो गया बस राम हवाले .
ध्यान कुछ इतर चीजों में
बँटा था - ये सच है  उन दिनों
मेरा  - कद थोडा घटा था .

आज सर की कालिख - शुभ्र
हो गयी  - मन की स्थिरता
तन की अशुधि - हद तक धो गयी .
अब मैं फिर से बड़ा हूँ -
दंड के सहारे ही सही - पर
पूरी तरह से -अपने पैरों पर खड़ा हूँ .


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