कभी कभी मौन भी - काटता है
अपना साया भी खुद को डांटता है .
ऐसे में कोई - कहीं से आ जाए
भर दोपहर में - बदली बन छा जाए.
पर ये होगा नहीं - क्यों की यहाँ
केवल मैं हूँ- और बोझिल तन्हाई है.
उसके आने की बात - किसने
ना जाने क्यों चलाई है .
कोई नहीं आएगा कहीं से - यूँ ही
वक्त गुजर जाएगा शायद - यूँही
मौसम की बात जाने दो - अश्क
बरसायेगा ना बादल - यूँही .
अपना साया भी खुद को डांटता है .
ऐसे में कोई - कहीं से आ जाए
भर दोपहर में - बदली बन छा जाए.
पर ये होगा नहीं - क्यों की यहाँ
केवल मैं हूँ- और बोझिल तन्हाई है.
उसके आने की बात - किसने
ना जाने क्यों चलाई है .
कोई नहीं आएगा कहीं से - यूँ ही
वक्त गुजर जाएगा शायद - यूँही
मौसम की बात जाने दो - अश्क
बरसायेगा ना बादल - यूँही .
कभी कभी मौन भी - काटता है
ReplyDeleteअपना साया भी खुद को डांटता है .
अनुभूति की सुंदर अभिव्यक्ति!