हाँ हम बुतों को पूजते हैं -
आदमी तो बात बात पर -यूँ
ही सरे आम खड़े खड़े धूजते हैं .
न्यायकर्ता -कोमल
बदन-मन नहीं होता .
देने को तुझे भगवान के पास
कोई धन- जतन नहीं होता .
लोग कहते भी हैं - ये तो पत्थर हैं
इनके मन नहीं होता .
फिर कौन तुझे देता है - क्या
वो कभी किसी से कुछ लेता है -या
तेरे कर्म का उसके पास कोई लेखा है
या फ़राख गिरी से हरकिसी को -जब
चाहे मांगे बिन मांगे देता है .
सच तो ये है - वो देता जरुर है
पर झोली के हिसाब से - या फिर
पुण्य कर्मों के प्रताप से .
चींटी को कण भर और हाथी को 'मण' भर
इसमें किसी को क्या गिला - सब को
उसकी औकात के हिसाब से मिला .
आदमी तो बात बात पर -यूँ
ही सरे आम खड़े खड़े धूजते हैं .
न्यायकर्ता -कोमल
बदन-मन नहीं होता .
देने को तुझे भगवान के पास
कोई धन- जतन नहीं होता .
लोग कहते भी हैं - ये तो पत्थर हैं
इनके मन नहीं होता .
फिर कौन तुझे देता है - क्या
वो कभी किसी से कुछ लेता है -या
तेरे कर्म का उसके पास कोई लेखा है
या फ़राख गिरी से हरकिसी को -जब
चाहे मांगे बिन मांगे देता है .
सच तो ये है - वो देता जरुर है
पर झोली के हिसाब से - या फिर
पुण्य कर्मों के प्रताप से .
चींटी को कण भर और हाथी को 'मण' भर
इसमें किसी को क्या गिला - सब को
उसकी औकात के हिसाब से मिला .
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