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Monday, November 14, 2011

मैंने बचपन को - जाते देखा है

मैंने बचपन को - आते नहीं
बस जाते देखा है
कब चला गया - पता ही नहीं चला  .

लगा हम एक दम से बड़े हो गए .
ऊँगली पकड़ चलते हुए - ना जाने
कब अपने पैरों पे खड़े हो गए .

जब छोटा था तो -
जल्दी बड़ा होना चाहता था .
छोटा होना - मुझे
बिलकुल भी नहीं भाता था .

अब बड़ा हो गया हूँ - तो
फिर से धूल में खेलते हुए -
माँ को - खिजलाते हुए .
देखना चाहता हूँ .

पर मेरा आज , मेरे कल से
बहूत ज्यादा बड़ा है .
ऐसा नहीं होगा - जानता हूँ
क्यों की मेरा प्रतिरूप - आज
मेरी ऊँगली थामे खड़ा है .



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