दिन दहाड़े - खुली आँख के सपने
त्रिआयामी होते हैं - भले
श्वेतशाम हों - ना सही रंगीन .
जिनके टूटने का - मन में
डर नहीं होता - सच तो ये है की
रात का सपना - मर ही जाता है
कभी अमर नहीं होता .
दिन के उजाले-के सपने
सूर्य की मानिंद - इनकी
चमक कभी फीकी नहीं होती - नहीं
कैद होते पलकों के घेरों में .
नहीं टूटते कभी नीम अंधेरों में .
ये कभी स्वयम स्फूर्त
कभी प्रयास से - और कभी
देवकृपा से सच हो जाते हैं .
त्रिआयामी होते हैं - भले
श्वेतशाम हों - ना सही रंगीन .
जिनके टूटने का - मन में
डर नहीं होता - सच तो ये है की
रात का सपना - मर ही जाता है
कभी अमर नहीं होता .
दिन के उजाले-के सपने
सूर्य की मानिंद - इनकी
चमक कभी फीकी नहीं होती - नहीं
कैद होते पलकों के घेरों में .
नहीं टूटते कभी नीम अंधेरों में .
ये कभी स्वयम स्फूर्त
कभी प्रयास से - और कभी
देवकृपा से सच हो जाते हैं .
और कभी
ReplyDeleteदेवकृपा से सच हो जाते हैं ||
बधाई ||
बढ़िया प्रस्तुति ||