सभी कहते हैं -
मैं कविता लिखता हूँ - पर
क्या जज्बात शब्द ओढ़ लें तो -
कविता बन जाती है -
या भाव निर्लज होकर
सरेराह बिखर जाएँ -
तो कविता होती है -
ये तमाशा है जनाब -
मनोभावों का दिखावा -
इसे सच मे कविता नहीं कहते .
कविता कलम से - नहीं
बन्दूक से निकलती है .
दिलों की आग दीये सी नहीं
मशाल सी जलती है -
हवा साथ दे तो फिर देख -
कैसे क्रांति की पुरवाई -
तूफानी जोर शोर से चलती है .
मैं कविता लिखता हूँ - पर
क्या जज्बात शब्द ओढ़ लें तो -
कविता बन जाती है -
या भाव निर्लज होकर
सरेराह बिखर जाएँ -
तो कविता होती है -
ये तमाशा है जनाब -
मनोभावों का दिखावा -
इसे सच मे कविता नहीं कहते .
कविता कलम से - नहीं
बन्दूक से निकलती है .
दिलों की आग दीये सी नहीं
मशाल सी जलती है -
हवा साथ दे तो फिर देख -
कैसे क्रांति की पुरवाई -
तूफानी जोर शोर से चलती है .
शुक्रवारीय चर्चा-मंच पर है यह उत्तम रचना ||
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