ये सिरफिरा चाँद - पागल है
पर नहीं अनजान .
चन्द्रप्रभा के दुखों से - आखिर
क्यों नहीं परेशान .
सुन , तुझ से क्या -
कहती है चांदनी - जो
बादल हवाओं में अटकती -
धरती पर आने को भटकती .
क्यों नहीं उतरने देती - इसे
ये प्रचंड सुर्यप्रभा - जमीन पर .
और तभी - सुबह के
अंदेशे में - लौट जाती है -फिर
वापिस चंद्रलोक को .
ये क्रम अनंत काल से - चल रहा है
रात हो रही है - दिन निकल रहा है .
पर नहीं अनजान .
चन्द्रप्रभा के दुखों से - आखिर
क्यों नहीं परेशान .
सुन , तुझ से क्या -
कहती है चांदनी - जो
बादल हवाओं में अटकती -
धरती पर आने को भटकती .
क्यों नहीं उतरने देती - इसे
ये प्रचंड सुर्यप्रभा - जमीन पर .
और तभी - सुबह के
अंदेशे में - लौट जाती है -फिर
वापिस चंद्रलोक को .
ये क्रम अनंत काल से - चल रहा है
रात हो रही है - दिन निकल रहा है .
ये क्रम अनंत काल से - चल रहा है
ReplyDeleteऔर चलता ही रहेगा... अनंतकाल तक !