ये कैसा बाबा है -
जो मंदिर है ना काबा है .
वो देखो चाकू सी -
पसलियों से कर रहा अपील -
एक इंच जगह मिले तो घूस जाऊं .
तेरी सारी अंतड़ियाँ - यहाँ-वहां
राजपथ पर ही फैलाऊँ .
क्या मासूमियत है -
थोड़ी सी ही सही - जगह मिले
तो बैठ जाऊं तेरे अवसान के -
लम्बे लम्बे गीत पूरे हिंदुस्तान
को गा गा के सुनाऊँ .
गजब है - इस क्रांति के रंग
ऐसे तो नहीं देखे -उस
"महात्मा" के भी ढंग - जिसने
पूंछ पूंछ कर सरकार से - करी
अवज्ञा या सत्याग्रह की जंग .
अरे कुछ करने की ही जिद है -
या बुढ़ापे की सनक है- रहने दे
हमे नहीं चाहिए ये सरकारी -
भीख में मिली प्रायोजित क्रांति -
हम ढून्ढ लेंगे कोई नया गाँधी .
कोई दूसरा उपाय निकाल लेंगे -
खुद को किसी और - अलग
नए साँचें में ढाल लेंगे .
पर अभी तो बस कर -
बहूत हुआ ये नाटक - कभी
मजबूरी ही पड़ गयी तो - भात
तेरे पतीले में भी उबाल लेंगे .
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