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Thursday, July 7, 2011

एक दिन और गया .

छोडो भी बीत गया -
रोकते पकड़ते - बस
अच्छा वो दौर गया .
एक दिन और गया .

जीवन की डोरी -
होती और छोटी,
साँसों की आहट-
धीमी मद्धम होती.
मृत्यु की -डगर पर -
प्राणों का दौर गया .
एक दिन और गया .

नभ में - जीवन पतंग
उडती पर पंख तंग -
हवाओं से ठनी- जंग .
मन के मरुस्थल में-
बादलों का शोर गया .
एक दिन और गया .

भीगे दृग - ढूँढ़ते हैं
राहों के - सर्प दंश
मन के - इस दर्पण में
विचरते अब नहीं हंस .
भटके अरण्यों में -
कहाँ मगर ठौर गया .
एक दिन और गया .

पल -छिन से भागते
दिवस शाम -जागते से सोते
हम हुए - तो क्यों हुए
काश हम ना होते .
कहने -सुनाने में-
जीवन का छोर गया .
एक दिन और गया .

1 comment:

  1. भीगे दृग - ढूँढ़ते हैं
    राहों के - सर्प दंश
    मन के - इस दर्पण में
    विचरते अब नहीं हंस .



    आपका हार्दिक अभिनन्दन ||

    आभार ||

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