हमे फख्र है - हम गरीब हैं
कोई चोर नहीं है यार .
मेरे कनस्तर में भले ही -
आटा नहीं मिलता है - पर
किसी स्विस बैंक में कोई
खाता भी नहीं चलता है .
दुनिया बदल जाती है - बारह बरस में
तो कुड़ी के ढेर के भी दिन बदलते हैं .
एक हम हैं - की वहीँ के वहीँ हैं
पता नहीं हमारे भाग्य किस दिशा में और -
कौन सी गति से चलते हैं .
कहने को बहूत हैं हम - आबादी का
एक तिहाई हिस्सा -पर कोई
कथा कहानी - नहीं बनती हमारी
जिन्दगी का कभी किस्सा .
वैसे देश है - नेता हैं , सरकार है
पर हमें क्या - हमारे लिए तो
सारे बिलकुल बेकार है.
अगर पत्ता भी हिलता है - तो
सारा वजूद कांपता है - नंगे
रहने की आदत है - हमारे
शरीर यहाँ कौन ढामपता है .
हमें ये क्या कपडे पहनाएंगे -
गर मांग भी लिए - तो
हम ही शर्मशार हो जायेंगे -
गाँधी की तरह ये खुद ही-
एक लंगोटी में सामने खड़े हो जायेंगे .
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