सत्य कहना और उसे -
उसी भाव से सहना - कहाँ है
इतना आसान - इस दुनिया में
निर्विकार भाव से रहना .
जब सच की खोज में-
इतने बूढ़े हो जाओगे -की
झूठ के कलेवर में छुपे - सत्य
को कैसे जान पाओगे .
मान ले मेरी बात - हट मत कर
बादल सूरज को कितनी देर तक
छुपायेगा - सुबह होगी - तो तू ही नहीं
सारा जग जान जाएगा .
फिर अपनी फैली बिसात से-
चाँद तारों में से - आखिर
किस किस को उठाएगा .
दिए का मान - क्या होता है
उस दिन तेरी समझ में खुद आ जाएगा.
बहुत सुन्दर रचना!
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