आ लौट चले - फिर से
गाँव के मकान में .
शहरों के जंगलों में
अब ये दिल नहीं लगता .
जितना भी जी लिए -
वो बेकार ही गया .
खेली तो सभी बाजियां
मैं हार ही गया .
दुनिया जहांन - चाहिए
ना की तेरी आरजू
ना सनम ही मिला
ना भगवान ही मिला
उग आई घास - अब तो
मेरी छत पर यारो .
वीरान से मकान में
अब दिल नहीं लगता .
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