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Sunday, January 27, 2013

अब ये दिल नहीं लगता

आ लौट चले - फिर से 
गाँव के मकान में .
शहरों के जंगलों में 
अब ये दिल नहीं लगता .

जितना भी जी लिए -
वो बेकार ही गया .
खेली तो सभी बाजियां 
मैं हार ही गया .

दुनिया जहांन - चाहिए 
ना की तेरी आरजू 
ना सनम ही मिला 
ना भगवान ही मिला

उग आई घास - अब तो 
मेरी छत पर यारो .
वीरान से मकान में 
अब दिल नहीं लगता .

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