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Sunday, September 1, 2013

पत्थर पानी में खूब तरा

ना पाने से ना खोने से -
ना जाने किस के होने से
कुछ रार चली कुछ प्यार चला .
रूठा ना - जो दिल हार चला .

कुछ साथ रहे कुछ छुट गए
माला से मोती टूट गए
कुछ मने रहे कुछ रूठ गए .
किसके पीछे संसार चला .

ना अपना था ना गैर कोई
ना प्रीत हुई - ना बैर कोई .
कुछ तट पर बैठे - डूब गए
लहरों का कारोबार चला .

ना पंथ चला ना धर्म चला
मरहम से ज्यादा घाव भला
मन में मानवता का सपना
मंदिर से थोडा दूर पला .

आदम से है इंसान बड़ा
पतझर में पत्ता खूब झरा .
लकड़ी की नौका डूब गयी
पत्थर पानी में खूब तरा  .




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