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Sunday, September 1, 2013

गाँधी चला विदेश और मोदी आने को है

पार्थ सारथि नहीं कृष्ण - ये कैसा रथ है .

भार भूमि भारत ये- कैसा महाभारत है .

कटे केश - पग टूटे , कर काटे बैरी ने

असमर्थ - है हृदय कंटकापूर्ण पथ है .



नाल गड़ी है कहीं - कहीं की है महतारी


पुत्ररत्न अभिषेक करेगी क्या गांधारी .


ललकारें है भर्त्य विदेशी स्वदेशी को


शुरू हुआ है ग़दर - भगा दो परदेसी को




विगत गया बस - आगत आने को है


दग्ध हृदय में घन बूंदें बरसाने को है .


तप्त मरू में बस पावस गहराने को है


गाँधी चला विदेश और मोदी आने को है .

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