पार्थ सारथि नहीं कृष्ण - ये कैसा रथ है .
भार भूमि भारत ये- कैसा महाभारत है .
कटे केश - पग टूटे , कर काटे बैरी ने
असमर्थ - है हृदय कंटकापूर्ण पथ है .
नाल गड़ी है कहीं - कहीं की है महतारी
पुत्ररत्न अभिषेक करेगी क्या गांधारी .
ललकारें है भर्त्य विदेशी स्वदेशी को
शुरू हुआ है ग़दर - भगा दो परदेसी को
विगत गया बस - आगत आने को है
दग्ध हृदय में घन बूंदें बरसाने को है .
तप्त मरू में बस पावस गहराने को है
गाँधी चला विदेश और मोदी आने को है .
भार भूमि भारत ये- कैसा महाभारत है .
कटे केश - पग टूटे , कर काटे बैरी ने
असमर्थ - है हृदय कंटकापूर्ण पथ है .
नाल गड़ी है कहीं - कहीं की है महतारी
पुत्ररत्न अभिषेक करेगी क्या गांधारी .
ललकारें है भर्त्य विदेशी स्वदेशी को
शुरू हुआ है ग़दर - भगा दो परदेसी को
विगत गया बस - आगत आने को है
दग्ध हृदय में घन बूंदें बरसाने को है .
तप्त मरू में बस पावस गहराने को है
गाँधी चला विदेश और मोदी आने को है .
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