चीजों के भाव आसमान छू रहें हैं
चलो आज नयी सब्जी बना लें .
थोडा सा सामिष ही सही - इन
राजनेताओं को - ही तल पका
भून कर - या कच्चा ही चबालें .
भून कर - या कच्चा ही चबालें .
थपेड़े राह - बदल देंगे अभी रहने दे
धार के साथ कुछ दूर मुझे बहने दे .
जुबाँ पे सच - आया है मुझे कहने दे
नियति के - घाव कुछ और सहने दे .
किसी से अब भला - क्या कहिये
मौज में मन के - बादशाह रहिये .
ज़माने का क्या - यूँही टोकेगा .
किसकी ताकत जो तुमको रोकेगा .
नफ़ा - नुक्सान इसमें क्या होना
ये जिन्दगी तो है यार खरा सोना .
जो मिल गयी तो जा सलामत है
वर्ना मुई मौत का भी क्या रोना .
ना जाने ये क्यों - ख्याल आया
रात आई ये क्या बबाल आया
रौशनी की चाहत - बहूत थी उसे
लो वो सूरज को ही उबाल लाया .
दिल में आया तो पूछा मैंने -
कहो कैसे तेरा आना हुआ ?
गज़ब की शिद्दत थी - उसमे यार
जिन्दगी तेरा रूप है पहचाना हुआ .
महज ये जिन्दगी - अकेली थी
थे जवाब - ना ये कोई पहेली थी .
हाथ में हाथ - नहीं था तो क्या
नार वो फिर भी नयी नवेली थी .
कहाँ अब रहने को जाइएगा -
बचा ऐसा कोई शहर नहीं -
शरण दे मेरे सपनो को - यहाँ
नहीं मिलता ऐसा - कोई घर नहीं .
सपने सभी के सच नहीं होते - यार
भौर होते ही आखों से चले जाते हैं .
दिन के उजाले में भी जो चला आये
ऐसे सपने किसी किसी को आते हैं .
कहने से कुछ नहीं होगा - पर कुछ
करने की बात बेमानी सी लगती है .
मुझसे पहले कर गए लोग - आज
सच नहीं एक कहानी सी लगती है .
बहूत बेमज़ा सा यार अपना सफ़र निकला
घर से बाहर - ना दम घर के अंदर निकला .
हाशिये पे काट दी जिन्दगी - हमने तमाम
जिल्द पे जो गीत - था वही भीतर निकला .
ये लफ्फाजियां -
ये शब्दों के तीर -
किसी का क्या कर लेंगें -
जब तक असर होगा -
तब तक तो लोग मर लेंगे .
अपनी मसरूफियत थोड़ी कम कर
हर कंकर पत्थर तो मत हज़म कर
यूँ तो जागने के होते हैं - कई रास्ते
थोडा फेस बुक पे भी तो रहम कर .
जीवन की -
तेज़ धार में
तेज़ धार में
कौन मना -
कौन रूठा .
कौन रूठा .
कौन साथ चला -
कौन पीछे छूटा .
कौन पीछे छूटा .
अब कुछ भी याद नहीं -
क्या फायदा -
सोचना अब बेकार
सोचना अब बेकार
छोडो भी -
जाने दो यार .
जाने दो यार .
बरसों रहा किये - उनके कूंचे में कहीं हम
अब याद कहाँ - महुल्ला कौन सा था यार .
कहने को कह दिया - दिल जरा नाराज़ भी है
सच कहूं इस दिलको तेरा इंतज़ार आजभी है .
गणित का प्रश्न -
नहीं है जिन्दगी
नहीं है जिन्दगी
हर बार दो दुनी चार -
नहीं यार दो दुनी -
दो भी रह जाते हैं -
नहीं यार दो दुनी -
दो भी रह जाते हैं -
जानते हो हम
ऐसा क्यों कह जाते हैं .
ऐसा क्यों कह जाते हैं .
जहर जिन्दगी है तो
हयात क्या होगी .
बनेगी जो बात तो -
फिर वो बात क्या होगी .
सवाल इतने टेढ़े हैं -
फिर सोच जरा -
जवाबों की -
बिसात क्या होगी .
बिसात क्या होगी .
एक अधूरा अहसास नहीं होता है
जब कोई अपना पास नहीं होता है .
मनमर्जी से जीना तो खुदगर्जी है
शायद इसी को प्यार कहते हैं यार .
पंखी झलने से - अंधड़ नहीं आया करते
बूँद बरसात की पर्याय कभी नहीं होती है .
सेतु सागर पे गिलहरी को बनाने दो यार
कौशिश करने वालोंकी कभी हारनहीं होती है .
एक बात कहूं - ऐ खुदा
चल दोस्त हो जाएँ - इस पूरी
कायनात में - तू भी तो अकेला है
और मैं भी हूँ अकेला .
ये महूब्ब्त है जो हमको हरपल जोडती है
वर्ना दुनियादारी तो हर जोड़को तोडती है .
अपना कहने से कोई अपना नहीं होता यार
हर गैरको महूब्ब्तही अपनी तरफ मोडती है .
यार ये जो इंसान है -
बहूत सख्त जान है -
फिर हे भगवान -
इसपर तू इतना क्यों मेहरबान है .
बहूत सख्त जान है -
फिर हे भगवान -
इसपर तू इतना क्यों मेहरबान है .
ये जो तुझमे मेरी महूब्ब्त का वास है
मैं जान जाता हूँ - तू मेरे आसपास है .
बनिस्बत खुशियों के - गम बहूत ज्यादा तो ना थे
गंगा स्नान भला - क्यों गंदे नालों में नहाया जाए .
बंद आँखों में - अँधेरे के सिवा कुछ नहीं
तुम जो पलकें खोलो तो सुबह हो जाए .
ये तूने कुछ कहा तो है .
ये मैंने कुछ सुना तो है
लब चुप है मगर - हम
दोनों ने कहा- सुना तो है .
रिश्ते यूँ कभी बेनाम नहीं होते लेकिन -
दिलके रिश्तों के कोई नाम नहीं होते .
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