नींद से जाग जा प्यारे
धूप अब निकल आई है .
पगों को तोल ले पहले -
आगे कठिन चढ़ाई है .
'परो' से आस्मां ऊँचा रहा
कद अपने घट गए - जाने
कितने दायरों में इंसान बंट गए .
जो पत्थर मील के थे - वो
तो जाने कब के हट गए .
मिली ना नहर मीठी जब
बुझाने प्यास दुनिया कि
हिमालय से चले दरिया - वो
खारे समन्दर में सिमट गए .
बहुत खूब सर ..
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