फल- फूल देता था कभी -
पर आँगन में खड़ा ये -
बूढ़ा पेड़ -
अब कतई - बाँझ है .
मैं जानता हूँ - ये इसकी
जिन्दगी की साँझ है .
पर मेरा बचपन -
इसके कंधे पे बीता .
पर अब अप्रासंगिक हो गया है
क्यों की मेरा बचपन -
जीवन की भूल भूलैया में
जाने कहीं खो गया है .
जिस्म सूख गया - उसका
पर आँखों में - अपूर्व शान्ति है
मन में ना कहीं कोई - संताप है .
उसके सम्मुख - मैं
आजभी बच्चा हूँ -
क्यों की वो मेरा बाप है .
पर आँगन में खड़ा ये -
बूढ़ा पेड़ -
अब कतई - बाँझ है .
मैं जानता हूँ - ये इसकी
जिन्दगी की साँझ है .
पर मेरा बचपन -
इसके कंधे पे बीता .
पर अब अप्रासंगिक हो गया है
क्यों की मेरा बचपन -
जीवन की भूल भूलैया में
जाने कहीं खो गया है .
जिस्म सूख गया - उसका
पर आँखों में - अपूर्व शान्ति है
मन में ना कहीं कोई - संताप है .
उसके सम्मुख - मैं
आजभी बच्चा हूँ -
क्यों की वो मेरा बाप है .
बहुत सुन्दर संवेदनशील प्रस्तुति..
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