ये देश तेरे बाप का नहीं है -
की जैसे चाहे चला लो .
ना ही हम भेड़ हैं कि -
चाहे जिससे और
जैसे चाहे हंकवालो .
शेरों के लिए -पिंजड़े नए
इजाद मत कर - फिजूल की
बातों में अपना- और देश का
वक्त - बर्बाद मत कर .
इन नौटंकियों से कुछ होने-
हूवाने वाला नहीं - जनजागरण
और रथ यात्रा - बेकार जाएगी
इस तरह से तो तेरे चमचों की फ़ौज
यक़ीनन चुनाव हार जायेगी .
कुछ नया सोच - नया कर
कुर्सी नीचे से निकल ना जाए .
बेहतर तो है - किसी दुश्मन से
(पाकिस्तान ज्यादा मुफीद रहेगा)
रार ठान - या सीधे सीधे लड़ मर .
शायद कुछ समय - और चिपक
जाए कुर्सी से फेविकोल की तरह .
पर ये टोटके ज्यादा दिन -
काम आने वाले नहीं .
शाम डूबने को है - तेरा सूरज
भर दोपहर में बुझ ना जाए कहीं .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteमेरी बधाई स्वीकार करें ||
आपकी पोस्ट पर -
यह मेरी 51वी टिप्पणी ||
आभार -
जो यह अवसर मिला ||