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Wednesday, September 4, 2013

छुड़ाकर हाथ भागा हूँ .


सुबह की बात करनी क्या
अभी सपनो से जागा हूँ  .
अँधेरी रात थी यारो -
छुड़ाकर हाथ भागा हूँ .

अँधेरा जब तलक छाये
ना तब तक रात होती है
उजालों में नहीं सपनो से -
कोई बात होती है .

ये सपने रात भर हमको
कभी सोने नहीं देते -
मेरे होते तो हैं पर -
और का होने नहीं देते .

यही है रात का सच -
यार तुमको मैं बताता हूँ .
जब आँखें बंद करता हूँ .
खड़ा सूरज को पाता हूँ .

रोज़ ये जागना - सोना
तेरा मिलना तेरा होना .
लगे दुनिया मुझे सपना
जो टूटे यार क्या रोना .

1 comment:

  1. जब आँखें बंद करता हूँ .
    खड़ा सूरज को पाता हूँ .

    वाह!

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