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Monday, November 26, 2012

एक फूल - खिला

एक फूल - खिला 
सुबह - आस्मां में 
चाँद छुट्टी पर था -
टहलता सूरज मिला .

प्रेम स्वछन्द नहीं -
बंधा है अदृष तारों से 
नीचे जमीं से - और
ऊपर सितारों से .

बीच में कहीं क्षीण सी 
डोर थामे - झूम गयी 
हिंडोले में - श्रृंगार किये 
पल पल बदलती आशाएं .

हृदय में पलती - 
झूमती चलती - इतराती 
कनखियों से देखती -
बहूत करीब से निकलती .

वो देखो - लचकती 
बल खाती - इठलाती 
एक बेल - अभी चढ़ी है 
विधुत स्तम्भ पर .

विभ्रम में फंसा तन -
मोह में घिरा मन . 
कहता है प्यार नहीं है कहीं - 
लालसाएं हैं यहाँ - या 
आने वाले कल की  
जिजीविशायें है .

  

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