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Monday, November 26, 2012

आ लौट चलें

इतनी दूर आ गए हैं की 

अब लौटना - मुश्किल हो गया . 

जीवन की भूल भुलैया में 

वो बचपन - ना जाने कहाँ खो गया .


आ लौट चलें - फिर वहीँ 

सपनों की - अपनों की 

उसी दुनिया में - जहाँ 

फ़िक्र की मंजिल - स्कूल से 

आगे नहीं जाती थी .


आँखें - रोती नहीं - 

घडयाली आसूं बहाती थी .

बड़ों की कोई सीख - 

जरा भी मन को नहीं भाती थी .


समय का फेर - 

आज देखो कितना बड़ा है .

मेरा आज - कसकर

मेरी ऊँगली पकडे खड़ा है .

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