Popular Posts
चोट लगती है फूल से भी यार
चोट लगती है फूल से भी यार फूल पत्थर की तरह फैंको मत सुर नहीं साज नहीं आवाज़ नहीं अब यूँ गधों की तरह रेंकों मत . जिनावर ...
मंथर गति से - बहती हवा
मंथर गति से - बहती हवा कह रही है - अभी ठहर कुछ देर यहीं रुक जा . ये काले - कजरारे उमड़ते -हुए मेघ . कहाँ जायेगा - चल यहीं बरस जा . ...
गर मशाल हाथ में नहीं
गर मशाल हाथ में नहीं - तो बस एक टांग पर मुर्गा बन खड़े रहो - या चुपचाप अपने घर में - निष्प्रयोजन पड़े रहो . बचाने कोई नहीं आने वाला तु...
Friday, June 10, 2016
आँधियों के दौर हर मंज़र उदास है -
बचने की भला अब किसको आस है
अंजाम से डरे हुए कुछ लोग तो मिले
अंजाम बदल दें मुझे उसकी तलाश है .
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)