बहूत हो गये जो संभलते नहीं अब -
पुराना मैं चुकता हिसाब बेचता हूँ .
ये नेता गवैये और खेलों के भैये -
खरीदो - लो पूरी जमात बेचता हूँ .
खादीकी किस्म खराब बेचता हूँ -
मफ़लर टोपी - जुराब बेचता हूँ .
हर पाँव में फिट आ जाए वो जूता -
हर चेहरे के नकली नकाब बेचता हूँ .
चीज़ ऐसी मैं इक नायाब बेचता हूँ -
गुलामी का जिन्दा सुहाग बेचता हूँ .
देशद्रोहियों को तेज़ जुलाब बेचता हूँ -
बोलो खरीदोगे मैं इन्कलाब बेचता हूँ .
पुराना मैं चुकता हिसाब बेचता हूँ .
ये नेता गवैये और खेलों के भैये -
खरीदो - लो पूरी जमात बेचता हूँ .
खादीकी किस्म खराब बेचता हूँ -
मफ़लर टोपी - जुराब बेचता हूँ .
हर पाँव में फिट आ जाए वो जूता -
हर चेहरे के नकली नकाब बेचता हूँ .
चीज़ ऐसी मैं इक नायाब बेचता हूँ -
गुलामी का जिन्दा सुहाग बेचता हूँ .
देशद्रोहियों को तेज़ जुलाब बेचता हूँ -
बोलो खरीदोगे मैं इन्कलाब बेचता हूँ .
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (03-02-2015) को बेटियों को मुखर होना होगा; चर्चा मंच 1878 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
खादीकी किस्म खराब बेचता हूँ .
ReplyDeleteमफ़लर टोपी - जुराब बेचता हूँ .
हर पाँव में फिट आ जाए वो जूता -
चेहरे रूपोश हो वो नकाब बेचता हूँ .
बहुत खूब।
बहुत खूब
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