ये नदी -सतत बहती हुई -
मेरे आने वाले कल को,
मेरे आज से मिलाती है .
शांत रहती है - अंतर में उमड़ते
तूफानों को बेतरह छुपाती है.
मैं चुप नहीं रह सकता- तुम
कुछ भी कहो -चले जाओ
मेरा साथ छोड़ या -
फिर साथ रहो .
यहाँ मैं हूँ - बस
या ये नदी-
जो बहूत कुछ कहती है -
रुक जाना -जीवन नहीं है
इसी लिए शायद -और उद्दाम वेग से
बहती है .
मेरी कविता मेरे एकांत का नहीं-
मेरे पल भर के मौन का प्रतिफल है
मैं शांत हूँ - पर
कविता में मेरे हलचल है .
मेरे आने वाले कल को,
मेरे आज से मिलाती है .
शांत रहती है - अंतर में उमड़ते
तूफानों को बेतरह छुपाती है.
मैं चुप नहीं रह सकता- तुम
कुछ भी कहो -चले जाओ
मेरा साथ छोड़ या -
फिर साथ रहो .
यहाँ मैं हूँ - बस
या ये नदी-
जो बहूत कुछ कहती है -
रुक जाना -जीवन नहीं है
इसी लिए शायद -और उद्दाम वेग से
बहती है .
मेरी कविता मेरे एकांत का नहीं-
मेरे पल भर के मौन का प्रतिफल है
मैं शांत हूँ - पर
कविता में मेरे हलचल है .
No comments:
Post a Comment