पंछी ऐसे आते हैं-
दूर देश जीवित रहने के
साधन -जब थोड़े रह जाते हैं .
मौसम जब ज्यादा -
उत्पात मचाते हैं .
तब दूर के मुसाफिर-
परदेश की शाखों को -
अपना बसेरा बनाते हैं .
पंछी ऐसे आते हैं -
जब वे जलावतन हो जाते है.
प्रचंड आंधियों में -
कानन के चीड जब आपस में
रगड़ खाते हैं .
और दावानल -बडवानल की
प्रचंड अग्नि के शिखर -उनके
घोंसलों तक जला जाते हैं .
पंछी ऐसे जाते हैं -
जब आंगन के दरखत -
बेवजह काट दिए जाते हैं .
खेत खलिहानों में- लोग जब
उन्हें जबरन उड़ाते हैं .
जीने के जब अधिकार सारे -
ख़तम हो जाते हैं -तब
पंछी -अपना घर छोड़ कर-
जलावतन हो जाते हैं -और
परदेश को अपना वतन बनाते हैं .
दूर देश जीवित रहने के
साधन -जब थोड़े रह जाते हैं .
मौसम जब ज्यादा -
उत्पात मचाते हैं .
तब दूर के मुसाफिर-
परदेश की शाखों को -
अपना बसेरा बनाते हैं .
पंछी ऐसे आते हैं -
जब वे जलावतन हो जाते है.
प्रचंड आंधियों में -
कानन के चीड जब आपस में
रगड़ खाते हैं .
और दावानल -बडवानल की
प्रचंड अग्नि के शिखर -उनके
घोंसलों तक जला जाते हैं .
पंछी ऐसे जाते हैं -
जब आंगन के दरखत -
बेवजह काट दिए जाते हैं .
खेत खलिहानों में- लोग जब
उन्हें जबरन उड़ाते हैं .
जीने के जब अधिकार सारे -
ख़तम हो जाते हैं -तब
पंछी -अपना घर छोड़ कर-
जलावतन हो जाते हैं -और
परदेश को अपना वतन बनाते हैं .
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