जिन्दगी दो ही तरह से चलती है -
चाबुक से हांकिये- या बैल की तरह
खींचिए -बढ़ानी आगे ही पड़ेगी -
ये जिन्दगी की गाडी -
क्योंकि प्यादों को पीछे हटने की -
शतरंज में कतई मनाई है .
हाँ राजा वजीर की और बात है -
पर पैदल की भला क्या बिसात है -
ये अक्सर आगे बढ़ता है -
और मारा जाता है - हर बार .
हाँ कभी कभी- गद्दी भी पा लेता है ,
'बहादुर' से लाल बहादुर बन जाता है
पर हर बार ऐसा नहीं होता -
हर आदमी 'बहादुर' तो होता है पर
लाल बहादुर नहीं होता "
चाबुक से हांकिये- या बैल की तरह
खींचिए -बढ़ानी आगे ही पड़ेगी -
ये जिन्दगी की गाडी -
क्योंकि प्यादों को पीछे हटने की -
शतरंज में कतई मनाई है .
हाँ राजा वजीर की और बात है -
पर पैदल की भला क्या बिसात है -
ये अक्सर आगे बढ़ता है -
और मारा जाता है - हर बार .
हाँ कभी कभी- गद्दी भी पा लेता है ,
'बहादुर' से लाल बहादुर बन जाता है
पर हर बार ऐसा नहीं होता -
हर आदमी 'बहादुर' तो होता है पर
लाल बहादुर नहीं होता "
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