दरख़्त की शिराओं से -
पूछो कैसे बीती जिन्दगी,
चिलचिलाती धुप -
पुरवैया हवाओं से- पूछो
कंपकंपाती तीखी सर्द फिजाओं से -
कि कैसे जिस्म हो जाता है -कंगाल
पुरवैया हवाओं से- पूछो
कंपकंपाती तीखी सर्द फिजाओं से -
कि कैसे जिस्म हो जाता है -कंगाल
रूह कैसे हो जाती है फ़ना -
मौसम से नहीं - मेरी
मरती -चटखती हुई शिराओं से -
मौसम से नहीं - मेरी
मरती -चटखती हुई शिराओं से -
पूछो कैसे बीती जिन्दगी .
No comments:
Post a Comment