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Monday, June 6, 2011

अब काहे चिल्ल पों मचाते हैं

अब काहे चिल्ल पों  मचाते हैं -
जभी काहे नहीं रोका - चिरैया
चुग रही थी ना -जब
ससुर -तुम्हार खेत .

काहे नहीं - बीच में ' डरावना'
मुखोटा टांगे- लाठी अपनी
तबही काहे नहीं भांजे .

अब खेत की मढैया पर बैठे
काहे रोते -मातम मनाते हैं
खाए हुए दाने - ऐसन काहे
वापस आते हैं .

ओ फसल तो बर्बाद भई- अब
कछु आगेन की सोच - के का
करना है - साहोकार का माथा
फोड़ना है - या के
हाथ मरोड़ के ही छोड़ना है  .

पर तोका बिलकुल भी -
अकल्वा नाही - अरे खाने
को तो चाहिए ना भाई - आइसे
एक एक दाना -छोड़ेगा तो
का बिछाएगा और -
बचुआ तू का ओधेगा .







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