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Saturday, June 4, 2011

'हम' नहीं सुधरेंगे .

मैं कहता हूँ तुम सुधर जाओ
तुम चाहते हो मैं सुधर जाऊं
सब चाहते हैं वे सुधर जाएँ .
पर 'हम' नहीं सुधरेंगे .

याद कर गाँधी के पास
संपत्ति के नाम पे क्या था -
बस एक लंगोटी- एक हाथ में
रोटी - और दूसरे में सोटी.
बाबा के पास ग्यारह -
हजार करोड़ की है बपौती .

ये फ़िल्मी नाटक बंद करो -
खुदको नायक ही बनाना है तो -
कोई स्विस बैंक भारतमें ही खोल लो .

देश का पैसा कम से कम बाहर तो
नहीं जायेगा - ये फार्मूला तुझे
मंत्री संत्री बनाने की राह में -
बहूत काम आएगा .

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