ये तुमने क्या किया .
जो करोड़ों लोगों के सूरज
बनके उभरते- तो तेरे सहारे -
हम लोग जीते -तुम
ना रहते तो भी राजघाट पर
राष्ट्रीय नायक की मौत मरते .
पर ८ दिन की भूख तेरे-
सारे कसबल निकाल गयी .
देश को फिर वही -अपने
पुराने ढरे पर ड़ाल गयी .
यूँ तो सूरज की रौशनी हो - फिर भी
आधा जगत - अँधेरा रह जाता है
टिमटिमाता ही सही - माटी
का दीपक हमसे बहूत -
कुछ कह जाता है .
होना तो यही था की - एक एक
दीपक हर घर से लाना चाहिए था.
असंख्य दीप मालाओं से -
इस देश को दीवाली की -तरह
हर रोज जगमगाना चाहिए था .
पर अब मैं क्या करूं - किस से
कहूं की कमान थाम ले - जो
इस देश को ही नहीं -पूरी
दुनिया जहाँ की हाथ में लगाम ले .
ना जाने क्यों मेरी सारी उम्मीदें - हर बार
बीच चौरास्ते पर दम तोड़ देती हैं.
तूफानी धाराएँ - मेरी किस्ती की
दिशा को राम जाने -
किस तरफ मोड़ देती हैं .
(बाबा रामदेव के अनशन की समाप्ति के सन्दर्भ में)
जो करोड़ों लोगों के सूरज
बनके उभरते- तो तेरे सहारे -
हम लोग जीते -तुम
ना रहते तो भी राजघाट पर
राष्ट्रीय नायक की मौत मरते .
पर ८ दिन की भूख तेरे-
सारे कसबल निकाल गयी .
देश को फिर वही -अपने
पुराने ढरे पर ड़ाल गयी .
यूँ तो सूरज की रौशनी हो - फिर भी
आधा जगत - अँधेरा रह जाता है
टिमटिमाता ही सही - माटी
का दीपक हमसे बहूत -
कुछ कह जाता है .
होना तो यही था की - एक एक
दीपक हर घर से लाना चाहिए था.
असंख्य दीप मालाओं से -
इस देश को दीवाली की -तरह
हर रोज जगमगाना चाहिए था .
पर अब मैं क्या करूं - किस से
कहूं की कमान थाम ले - जो
इस देश को ही नहीं -पूरी
दुनिया जहाँ की हाथ में लगाम ले .
ना जाने क्यों मेरी सारी उम्मीदें - हर बार
बीच चौरास्ते पर दम तोड़ देती हैं.
तूफानी धाराएँ - मेरी किस्ती की
दिशा को राम जाने -
किस तरफ मोड़ देती हैं .
(बाबा रामदेव के अनशन की समाप्ति के सन्दर्भ में)
ना जाने क्यों मेरी सारी उम्मीदें - हर बार
ReplyDeleteबीच चौरास्ते पर दम तोड़ देती हैं.
तूफानी धाराएँ - मेरी किस्ती की
दिशाओं को राम जाने -
किस तरफ मोड़ देती हैं .
....bahut marmsparshee prastuti..bahut sundar