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Tuesday, June 21, 2011

ये शतरंज का खेल है -प्यारे

बिसात कभी खाली नहीं रहती
कल कोई और था - फिर
कोई और आके जम जाते हैं .

ये शतरंज का खेल है -प्यारे                                                                                                                        हम इसमें ना जाने -क्यों
इतना ज्यादा रम जाते हैं.

राजनीति भी आज -कल
शतरंज का खेल हो गयी .
मानवता की पुकार - आज
गूंगी हो - ना जाने
किन कंदराओं में सो गयी .

कहीं भी देखो - आज प्यादे हर ओर है
वैसे - सफ़ेद गोटियाँ हार रही हैं-
कालियों का कुछ ज्यादा जोर है .

वैसे ख़ास ही नहीं आज -आम
आदमी भी खिलाडी हो गए
पांडवों की बात जाने दो -अब तो
हम सब पक्के जुआरी हो गए .

1 comment:

  1. सुन्दर सत्य अनमोल

    आना है-जाना है, इस जगत को कहाँ खली रहना है
    अभिलाषाओं की दौर में इस कदर अँधे हो गए हैं, कि
    जुए खेलने की आदत पद ही गई।
    बहुत सुन्दर गुरु जी

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