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Wednesday, June 8, 2011

ऐ मेरे गीत तू - अजन्मा रहे तो अच्छा है

ऐ मेरे गीत तू  -
अजन्मा रहे तो अच्छा है
मैं लिख भी दूं  - पर पढ़ेगा कौन
पढ़ा तो फिर - उसे सुनेगा कौन .
सुना तो फिर - इसे गुनेगा कौन .

मैं भी पागल हूँ -जो
देश दुनिया जगाने चला हूँ -सुबह
अपनी नींद तो खुलती नहीं -
अपने इस गीत से -सारे
जहाँ को सोते से उठाने चला हूँ .

छोड़ ये सब लफ्फाजी - तुकबाजी
भ्रूण हत्या पाप है -पर
आज कल तो सब माफ़ है
भले अच्छा तो नहीं लगेगा .
तू भी चैन से सो जा - और
तेरा पडोसी भी - सुबह की छोड़
जिन्दगी भर नहीं जगेगा .





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