मोम के ढेर सा
जिस्म गलत गया.
जिन्दगी ठंडी बरफ थी-
नंगे पाँव दूर तक चलता गया .
अलावों की रौशनी -
भ्रम के प्रेत सी
पास -दूर आती जाती रही .
समय की गाय -उम्र की घास
निर्बाध गति से -खाती रही .
अकड़ती हड्डियों से - मांस
की परत प्याज के छिलकों सी
उतरती गयी - जाती रही .
किनारे की मिटटी -
उफनती नदी की धारा -
भरभरा कर - गिराती रही .
चेहरे की लकीरें - और ज्यादा
गहराती गयी - जिन्दगी दूर
होती गयी -मौत पास आती गयी .
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