सारी दुनिया में - यार धर्म कुछ ऐसा चलाया जाए .
बाकी सब छोड -पहले इंसानको इंसान बनाया जाए .
रफ्ता रफ्ता टुकड़ों में बंट गया आइना-ए-इन्सां
कांच की किरंचों को - होशियारी से उठाया जाए .
टूटते जुड़ते - बिखर जाते हैं जाने क्यों लोग .
भला किस शय से अब इनको मिलाया जाए .
बड़ा बेगाना सा लगता है - इंडिया-ओ -हिन्दुस्तां यारो
आने वाले हरेक मेहमाँ को- अब भारत से मिलाया जाए
वाह बेहद खूबसूरत शायरी।
ReplyDeleteटूटते जुड़ते - बिखर जाते हैं जाने क्यों लोग .
ReplyDeleteभला किस शय से अब इनको मिलाया जाए .
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल...
sundar ghazal, sadhuvad
ReplyDelete