ये हम क्यूं बात करते-करते
चिल्लाते हैं - एक दुसरे से
जलते और खार खाते हैं .
समझ में आजकल नहीं आते हैं .
पता नहीं अंनाज की जगह -
आजकल रसोई घर में -
हम क्या पकाते - खाते हैं.
कबूतरों को हम -
बाज से क्यों लड़ाते हैं.
जामा मस्जिद से -अब उन्हें
क्यों नहीं उड़ाते है
या कबूतरों को पालना -
शौक नहीं रहा आजकल .
अब तो हम बे पर की -
हर रोज हांकते -उड़ाते हैं
प्रेम -प्यार की बात तो बस
रोटी सब्जी की सी बात है
क्या इनसे हम कभी उब पाते हैं.
इस प्यार के चलन को - हम
और आगे क्यों नहीं बढ़ाते हैं .
चिल्लाते हैं - एक दुसरे से
जलते और खार खाते हैं .
या एक दूसरे के कहे -व
अनकहे जज्बात - हमारीसमझ में आजकल नहीं आते हैं .
पता नहीं अंनाज की जगह -
आजकल रसोई घर में -
हम क्या पकाते - खाते हैं.
कबूतरों को हम -
बाज से क्यों लड़ाते हैं.
जामा मस्जिद से -अब उन्हें
क्यों नहीं उड़ाते है
या कबूतरों को पालना -
शौक नहीं रहा आजकल .
अब तो हम बे पर की -
हर रोज हांकते -उड़ाते हैं
प्रेम -प्यार की बात तो बस
रोटी सब्जी की सी बात है
क्या इनसे हम कभी उब पाते हैं.
इस प्यार के चलन को - हम
और आगे क्यों नहीं बढ़ाते हैं .
No comments:
Post a Comment