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Monday, May 30, 2011

ये हम क्यूं बात करते-करते चिल्लाते हैं

ये हम क्यूं बात करते-करते
चिल्लाते हैं - एक दुसरे से
जलते और खार खाते हैं .

या एक दूसरे के कहे -व
अनकहे जज्बात - हमारी
समझ में आजकल नहीं आते हैं .

पता नहीं अंनाज की जगह -
आजकल रसोई घर में -
हम क्या पकाते - खाते हैं.

कबूतरों को हम -
बाज से क्यों लड़ाते हैं.
जामा मस्जिद से -अब उन्हें
क्यों नहीं उड़ाते है

या कबूतरों को पालना -
शौक नहीं रहा आजकल .
अब तो हम बे पर की -
हर रोज हांकते -उड़ाते हैं

प्रेम -प्यार की बात तो बस
रोटी सब्जी की सी बात है
क्या इनसे हम कभी उब पाते हैं.
इस प्यार के चलन को - हम
और आगे क्यों नहीं बढ़ाते हैं .






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