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Wednesday, May 18, 2011

किसी से क्या गिला

किसी से क्या गिला
कौन से हमारे हिसाब ही साफ़ हैं
की दूसरों से सफाई मांगे .
हंगामे हमने इतने बो दिए
की तन्हाई हम क्या मांगे.

एक मेहमान कैसे  -पूरे महीने के
बजट को गड़बड़ा जाता है- आखिर
वो तुम्हारा कितना राशन खा जाता है .
तुम्हारे बनावटी स्नेह को -कभी सोचा है
किस कदर झुटला जाता है .

हम बात करते हैं -पूरे हिंदुस्तान की
नहीं पूरी दुनिया-जहान की .
कभी सोचा है - बिजली तुम्हारे घर
तक लाने में कितना खर्चा आता है .

सीवर पानी लाने में -सरकार की
सांस फूल जाती है - दम निकल जाता है .
आखिर तुम्हारे बिल देने से - उसका
कितना सा गड्ढा भरता होगा -
या सोचते हो काम चल जाता है .

पर हमे तो अपनी बात मनवाने के
के लिए- शौर मचाना - रेल पटरी  और सड़क पर
धरना देना ज्यादा भाता है -जानते भी
हो इनको बनाने -चलने में कितना खर्चा आता है .
सरकार कोई व्यापारी नहीं है -
तुमसे वसूल कर - तुम्हे ही तो दिया जाता है .

घर में श्रीमती -बच्चों की मांग
मानते मानते - आप का मिजाज सातवें
आसमान पर क्यों चला जाता है - फिर
ये तो देश है प्यारे - हमारा मनमोहन
भीख मांगने यूँ ही तो रोज रोज
अमेरिका के चक्कर नहीं लगाता है .
तुम देश क्या  चलाओगे - तुमसे तो
अपना घर ही संभाला नहीं जाता है .

दूसरों से हिसाब मांगना -आसान है
खुद भी जवाब देने की आदत डालो
जरा अपने अन्दर झाँक के देखो -तब
दुसरे की गिरेबान में हाथ डालो .

यूँ ही बात बात पर -तलवार भांजने से बचो -
पहले अपना घर गली मौहल्ला तो संभालो 
तब तो मुमकिन है देश नहीं -शायद
पूरी दुनिया को बचा लो .

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