तपती दोपहर में -
झुलसता तन बदन
नंगे पाँव - रेत पर
चक्कर लगाती मन
की उड़iन - कितना बेबस
मैला सा - निरीह आसमान .
बाट देखती -मेघों की पंक्तियाँ
इजाजत हो तो - बरस जाएँ.
इतने भारी जल के,
बोझ को कितनी देर -
कहाँ तक उठाएं.ना जाने कैसे होंगे मेघ -
जो बरसेंगे मेरे घर-आंगन में
जब -तब उन्हें हम बुलाएँगे
यकीन है -मेरे बुलाने पर वो
जरूर आयेंगे .
कितना मुश्किल सा
सफ़र मन मार कर -तय
करते होंगे मेघ.
समंदर में जल भरते होंगे मेघ -
अब वो घर से निकलते होंगे मेघ.
मेरे घर तक
बड़े अलसाये अंदाज में
चलते होंगे मेघ .
रास्ते के घर -खेत खलियान
में काम करते लोग -
मेरे सौभाग्य पर जलते होंगे.
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