हम -वज्रनाओ में बंधकर क्यों रहतें हैं
मन के बंधन -खोल क्यों नहीं देते .
बंध कर -बकरियों की तरह
एक सीमा में- खाना -जीना, रहना .
कितना कष्टदायी होता है .
तू क्या जाने - ये हम इंसानों से पूंछ
किस तरह से जीतें हैं .
हम किस किस विध-
पीढ़ी -दर-पीढ़ी ,बड़े जतन से -
इस दायरे में रहने के - सूत्र समझाते हैं .
ये तो जीवन नहीं !
फिर क्या करें -उन्मुक्त भाव से
दुनियां में -कैसे रहें .
आखिर सीमाविहीन -
कैसे रहा जा सकता है .
मन के बंधन -खोल क्यों नहीं देते .
बंध कर -बकरियों की तरह
एक सीमा में- खाना -जीना, रहना .
कितना कष्टदायी होता है .
तू क्या जाने - ये हम इंसानों से पूंछ
किस तरह से जीतें हैं .
हम किस किस विध-
पीढ़ी -दर-पीढ़ी ,बड़े जतन से -
इस दायरे में रहने के - सूत्र समझाते हैं .
ये तो जीवन नहीं !
फिर क्या करें -उन्मुक्त भाव से
दुनियां में -कैसे रहें .
आखिर सीमाविहीन -
कैसे रहा जा सकता है .
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