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Monday, January 17, 2011

ये कविता -बेजुबान नहीं

ये कविता -बेजुबान नहीं
हर गलत -कलुषित को
हर समय -डांटती है ,
अवसर हो तो श्वान के मानिंद
भोंकती है - काटती है .

पर- फिर भी
सूर्य सी प्रचंड रश्मि नहीं
चाँद की शीतल चांदनी -कहाँ ,
ये तो माटी के दिए की मंद लौ सी -
तिमिर छांटती है
हर समय - अंधेरों को काटती है .

काफी नहीं है - एक दीप
पूरा शहर दिवाली सा -
जगमगाना चाहिए ,
पूरी दुनिया मे -रौशनी को लाना चाहिए .

अपने मन के हर
अँधेरे कौने को प्रकाश से
नहलाना चाहिए

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